Priceless heritage of nature – प्रकृति की अमूल्य धरोहर

जब हम लहलहाते पेड़ पौधों, दौड़ते भागते पशुओं, रंग बिरंगे पक्षियों कल कल करती नदियां, झरनों, झीलों, तालाबों और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों को देखते हैं। तो हमारा मन अनायास ही प्रफुल्लित हो उठता है। ये सब प्रकृति की अनमोल और अनूठी कृतियाँ हैं। हम सभी इनके प्रति अनायास ही आकर्षित होते रहते हैं। प्रकृति के सांनिध्य में समय बिताने से हमें अपार आनंद की प्राप्ति होती है और हमें सुकून मिलता है। सोचो कि यदि यह सब न होता तो मनुष्यों का जीवन कैसा होता | प्रकृति के ये अनमोल उपहार न केवल सुंदरता प्रदान करते हैं, वरन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे – सांस्कृतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और पारिस्थितिक में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। पृथ्वी पर पेड़ पौधों व जीव जंतुओं की लाखों प्रजातियां पाई जाती है। ये सब प्रजातियां सम्मिलित रूप से जैव विविधता कहलाती है। वास्तव में जैव विविधता प्रकृति की अमूल्य धरोहर- Priceless heritage of nature है। प्रस्तुत लेख में हम जैव विविधता को समझने का प्रयास करेंगे।

Priceless heritage of nature

Priceless heritage of nature – प्रकृति की अमूल्य धरोहर

वास्तव में प्रकृति की अमूल्य धरोहर – Priceless heritage of nature ‘जैव विविधता’ ही है| जैव विविधता या बायोडायवर्सिटी दो शब्दों से मिलकर बना है– 1- जैव (Bio) 2- विविधता(Diversity) अर्थात् जैव विविधता किसी भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को कहते हैं। किसी भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जानवर, पेड़, पौधे, कवक और वैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीव मिलकर एक प्राकृतिक संसार बनाते हैं। ये सभी एक जैव विविधता के अंतर्गत आते हैं। इनमें से प्रत्येक जीव-जंतु, पेड़-पौधे तथा सूक्ष्म जीव संतुलन बनाए रखने तथा सकुशल जीवन निर्वाह करने के लिए पारिस्थितिक तंत्र में एक साथ काम करते हैं।
जैव विविधता के गूढ़ क्षेत्र नें शोधकर्ताओं, संरक्षणवादियो और प्रकृति के प्रति उत्साही लोगों के मन को समान रूप से आकर्षित किया है। मूलरूप में जैव विविधता जीवन रूपों और हमारे ग्रह को ढकने वाले पारिस्थितिकी तंत्र के बीच जटिल परस्पर क्रिया का प्रतिनिधित्व करती है। जब हम जैव विविधता की गहराइयों में जाते हैं तो हमें इसकी जटिलता की पेंचीदा परतों का सामना करना पड़ता है। यह केवल प्रजातियों की एक मात्र गणना नहीं है, बल्कि ये आनुवांशिक विविधता , पारस्थितिक अंतःक्रियाओं और विकासवादी चमत्कारों का एक अंत: जाल है जो विशाल परिदृश्य और सूक्ष्म क्षेत्रों में प्रकट होती है। जैसे जैसे हम इस भूलभुलैया में प्रवेश करते हैं, प्रस्फुटन जैव विविधता की एक मुख्य विशेषता बन जाती है। इसकी विशेषता और पेचीदगी की प्रवृत्ति के साथ मानव मन जैव विविधता की जीवंत और गतिशील प्रकृति में अपना प्रतिबिंब पाता है। जैव विविधता जीवन की एक मोहक चादर है जो हमारे ग्रह को आच्छादित करती है। इसकी गूढ़ और पेचीदगियों से घिरी हुई प्रकृति हमारी प्राकृतिक दुनिया के असंख्य भागों में विस्मयकारी यात्रा के लिए मंच तैयार करती है। इस चमत्कारिक दायरे में छिपे रहस्यों को उजागर करने के लिए हम दो मूलभूत अवधारणाओं- उलझन (Perplexity) और प्रस्फुटन (Burstiness) में तल्लीन हैं जो जैव विविधता के ताने वाने पर हावी है। आज हम जो जैव विविधता देखते हैं। वह चार से पांच अरब वर्षों के विकास क्रम के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है। पृथ्वी पर जैव विविधता मानव जीवन के प्रारंभ होने से बहुत पहले से उपस्थित थी। मानव जीवन के आने से जैव विविधता में कमी आने लगी क्योंकि मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए इस पर ही निर्भर था| किसी भी प्रजाति का आवश्यकता से अधिक उपयोग होने पर वह विलुप्त होने लगती है। पृथ्वी पर की प्रजाति की औसत आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। शोध बताते हैं कि अब तक पृथ्वी पर रहने वाली 99% प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकीं है। जैव विविधता पृथ्वी पर हर स्थान पर एक जैसी समान नहीं है, अपितु स्थान परिवर्तन के साथ-साथ ये भिन्न-भिन्न होती है। उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में जैव विविधता अधिक पाई जाती है और जैसे जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ जाते हैं तो जैव विविधता कम होती जाती है तथा जीवधारियों की संख्या बढ़ती जाती है|

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जैव विविधता के प्रकार ( Types of biodiversity )

जैव विविधता को निम्न प्रकारों में समझा जा सकता है।

  1. आनुवांशिक जैवविविधता (Genetic Biodiversity)
  2. प्रजातीय जैवविविधता (Species Biodiversity)
  3. पारितंत्रीय जैवविविधता (Ecosystem Biodiversity)

आनुवांशिक जैवविविधता (Genetic Biodiversity)

प्रत्येक प्रजाति के जीव अपने अपने जीन(Gene) से बने हैं। जीन ही जीवन की मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवांशिक जैवविविधता है। सभी मानव एक ही प्रजाति होमोसेपियंस वर्ग के हैं। फिर भी प्रत्येक स्त्री पुरुष एक दूसरे से भिन्न भिन्न होते हैं क्योंकि उनकी आनुवांशिक लक्षण भिन्न भिन्न होते हैं। यहाँ तक की सगे भाई बहनों में भी बिल्कुल एकरूपता नहीं होती। इसी प्रकार एक ही प्रजाति के पशु-पक्षी यहाँ तक की पेड़, पौधे तथा जीवाणु या सूक्ष्म जीव में भी विभिन्नता होती है। जैसे आम एक प्रजाति है। इसमें जीन की विविधता के कारण इसकी विभिन्न वैरायटी जैसे दशहरी, लंगड़ा, हापुस, आदि पायी जाती हैं। इसी प्रकार गेहूं, मक्का, धान, जौ आदि में भी भिन्न भिन्न वैराइटी होती हैं। इनके आनुवांशिक गुण जीन में समाहित होते हैं। जो जीनोम विश्लेषण से पता चलते हैं। किसी भी प्रजाति के अस्तित्व को बचाए रखने में आनुवांशिक विविधता की विशेष भूमिका होती है। अगर आनुवांशिक विविधता न होती तो किसी प्रजाति के प्रत्येक सदस्य को एक सामान बीमारी प्रभावित करती। परन्तु आनुवांशिक विविधता के कारण इनमें खतरों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। जिससे वह जीन के माध्यम से पीड़ित दर पीढ़ी स्थानांतरित करते रहते हैं। अन्य किसी प्रजाति की तुलना में मानव में आनुवांशिक विविधता अधिक होने के कारण मानव अपने आप को सभी प्रकार के बायोम या वातावरण में समायोजित कर लेता है।

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प्रजातीय जैवविविधता (Species Biodiversity)

किसी क्षेत्र या पारितंत्र में विभिन्न प्रजातियों का पाया जाना प्रजातियों जैवविविधता कहलाती है| भिन्न भिन्न प्रजातियों के जीवों में स्पष्ट रूप से भिन्नता पाई जाती है, तथा अलग अलग प्रजाति के जीवों में प्रजनन नहीं होता। जैसे कुत्ता, बिल्ली, बंदर, तोता, कौवा, शेर, चीता, सूक्ष्म जीव आदि सभी अलग अलग प्रजाति से हैं।
किसी पारितन्त्र में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव-जंतु, पशु-पक्षी,पेड़-पौधे तथा मानवों की संख्या तथा विविधता ही प्रजातीय जैवविविधता कहलाती है| किसी पारिस्थितिकी तंत्र में जैव विविधता को 0-1 की स्केल पर मापा जाता है। किसी पारिस्थितिकी तंत्र में ” 0 ” से आशय जैवविविधता की आदर्श स्थिति से है अर्थात ऐसे पारितंत्र में अनंत प्रजातियां निवास करती है। जिसे जैवविविधता का हॉट स्पॉट कहते हैं। “1 ” – से आशय है कि उस पारितंत्र में केवल एक प्रजाति पाई जाती है।
किसी पारितंत्र में प्रजातीय जैवविविधता जितनी अधिक होती है, उस पारितंत्र में खाद्य श्रृंखला उतनी ही जटिल होती है। अतः उस पारितंत्र में जैवविविधता अपनी आदर्श स्थिति में होती है। ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन जैसे अमेजन के जंगल, जो भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में 28 डिग्री के क्षेत्र में पाए जाते हैं, प्रजातीय जैवविविधता की दृष्टि से बहुत ही समृद्ध है। परन्तु ध्रुवीय प्रदेशों व स्थलीय अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में यह जैवविविधता कम होती जाती है।

पारितंत्रीय जैवविविधता (Ecosystem Biodiversity)

किसी पारितंत्र में उपस्थित जीव, जंतु, पेड़, पौधे व अन्य सदस्यों और अन्य पारितंत्र में उपस्थित सदस्यों के मध्य पाए जाने वाली विविधता को पारितंत्रीय जैवविविधता कहते हैं। अतः किसी भौगोलिक क्षेत्र में उपस्थित विभिन्न पारितंत्रों के मध्य पाए जाने वाली विविधता को पारितंत्रीय जैवविविधता कहते हैं। पारितंत्र या पारिस्थितिकीय तंत्र जैव व अजैव घटकों से बना होता है। ये दोनों घटक आपस में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। संसार में विभिन्न प्रकार के पारितंत्र है- जैसे बर्षा वन, घास के मैदान, टुण्ड्रा, मरूस्थल, झीलें, नदियाँ, समुद्र, पर्वत, आद्रभूमि आदि| प्रत्येक पारितंत्र की अपनी विशेषता होती है। भिन्न भिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में पारितंत्रीय प्रक्रियायें और आवास स्थान में भी भिन्नता होती है। यही भिन्नताएं पारितंत्रीय जैवविविधता बनाती है। हांलाकि पारितंत्रीय जैवविविधता को मापना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि पारितंत्र की सीमाएं निश्चित नहीं होतीं। किसी पारितंत्र में अजैव घटकों जैसे- मिट्टी, तापमान, जल तथा हवा का प्रभाव उसके जैव घटकों पर पड़ता है। साथ ही साथ जैव घटकों जैसे मानव कि क्रियाकलापों का प्रभाव वहाँ के अजैव घटकों को पर पड़ता है। जैसे मरुस्थलीय पारितन्त्र में पाए जाने वाले जीवों की प्रजातियां , समुद्री या वर्षावन में पाए जाने वाले जीवों की प्रजातियों से विभिन्नता होती हैं।

जैवविविधता का महत्त्व ( Importance of biodiversity )

जैवविविधता, मानव और पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों के जीवन से संबंधित प्रक्रिया के लिए बहुत ही आवश्यक है। किसी स्वस्थ पारितंत्र में विभिन्न प्रकार के जीव जंतु, पेड़, पौधे व सूक्ष्म जीवों की विभिन्न बैरायटी बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि यह हमारे भोजन पा सांस लेने में सहायता करते हैं। जैव विविधता का महत्त्व सिर्फ मानवीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तक ही सीमित नहीं है। अपितु ये पूरे भूगोल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैवविविधता न केवल एक सुंदर दृश्य प्रदान करती है, बल्कि यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं के लिए भी बहुत ही आवश्यक होती है। प्रकृति अपने संतुलन और स्वाभाविकता के लिए जैवविविधता का सहारा लेती है। किसी पारितंत्र में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव, पादप, जीव-जन्तु और मनुष्य एक दूसरे को क्या क्या लाभ पहुंचा सकते हैं, इस आधार पर जैवविविधता के महत्त्व का आकलन किया जाता है। जैवविविधता के कुछ पहलुओं को लोगों के द्वारा व्यापक रूप से महत्त्व दिया जाता है, लेकिन जब हम जैवविविधता का गहराई से अध्ययन करते हैं तो हमें पता लगता है कि कीड़े मकोड़े, बैक्टीरिया तथा असंख्यों सूक्ष्म जीव जिन्हें हम पसंद भी नहीं करते, वे भी बहुत महत्वपूर्ण है।
जैव विविधता के महत्त्व को हम कुछ बिंदुओं से समझ सकते हैं।

Priceless heritage of nature

सांस्कृतिक महत्त्व (Cultural Importance)

जैवविविधता प्रकृति में सुंदरता उत्पन्न करती है। नदियाँ, झरने, पर्वत, जंगल, मरुस्थल निसंदेह मानव का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जिससे पर्यटन को बल मिलता है। विश्व के कई देश जैवविविधता से इतने संपन्न हैं कि उनकी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन से ही आता है। जैवविविधता समृद्ध क्षेत्र में जाने से व्यक्ति को आध्यात्मिक अनुभव की प्राप्ति होती है। प्रकृति में समय बिताने से मनुष्यों की शारीरिक और मानसिक स्थिति में सुधार होता है। उच्च रक्तचाप और अवसाद जैसे मानसिक रोग प्रकृति के सांनिध्य में आने से स्वत: ही ठीक होने लग जाते हैं। इसके अलावा जैवविविधता कला और अभिप्रेरणा को भी बल देती है। हमारी बहुत सी सांस्कृतिक परम्पराएँ पेड़ पौधों व जीव जंतुओं से जुड़ी हुई है। जैव विविधता हमारी संस्कृति के संवर्धन के लिए भी बहुत आवश्यक है।

आर्थिक महत्त्व ( Economic importance )

जैवविविधता मनुष्यों को वस्तुओं के निर्माण और खपत के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराती हैं। कृषि के क्षेत्र में इसका बहुत महत्त्व है। यह यूं कहें कि कृषि जैवविविधता से मनुष्यों को बहुत लाभ है। मानवों व पशु पक्षियों के लिए जैवविविधता खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करती है। पौधों की ऐसी बहुत सी प्रजातियां हैं जो मानव व जीव जंतुओं के लिए भोजन का निर्माण करते हैं। पेड़ पौधों से लकड़ी उद्योग के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है इसके अलावा पेड़ पौधों से कुछ जटिल रसायन प्राप्त होते हैं, जिससे हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाले अनेकों पदार्थ जैसे- लेटेक्स और रबर आदि का उत्पादन होता है। समुद्री पारितंत्र या जलीय पारितंत्र से भी मनुष्यों को बहुत ही लाभ है। समुद्र में पायी जाने वाली मछलियाँ और सीफूड मनुष्यों की आजीविका का साधन है। पौधों व जीवों से प्राप्त पदार्थों से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ बनाई जाती है। जैसे- अफीम मार्फीन से दर्द निवारक दवा, कुनैन से मलेरिया की दवा आदि। भारतीय आयुर्वेद में रोगों के उपचार के लिए पेड़ पौधों का बहुत ही महत्त्व बताया गया है। आयुर्वेद में लगभग सही तरह के रोगों का इलाज पेड़-पौधों, वनस्पतियों के द्वारा बताया गया है। आधुनिक हौम्योपैथी में भी औषधियों के निर्माण में जैव विविधता का एक विशिष्ट स्थान है। बहुत से पेड़, पौधे और कुछ सूक्ष्मजीव। हौम्योपैथी की औषधि बनाने में योगदान करते हैं। विश्व के लगभग एक तिहाई फसल उत्पादन में पक्षियों, मधुमक्खियों, तितलियों व अन्य जीवों की बहुत भूमिका है। इन्हें परागणक कहते हैं, इन परागणकों के बिना बहुत से खाद्य पदार्थों जैसे सेब, चेरी, बादाम, ब्लूबेरी का उत्पादन ही संभव नहीं है। जैवविविधता की आर्थिक क्षेत्र में महती भूमिका है।

वैज्ञानिक महत्त्व ( Scientific importance )

जैवविविधता के अध्ययन से पारस्थितिकीय डेटा प्राप्त होता है जो पृथ्वी पर जीवन के प्रारंभ तथा विभिन्न प्रजातियां के विकास क्रम को समझने में सहायता करता है। विलुप्तप्राय प्रजातियों के विलुप्त होने के कारण तथा जीवित प्रजातियों की पर्यावरण से होने वालीं प्रक्रियाओं के विश्लेषण में यह सहायता करती है।

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पारिस्थितिकीय महत्त्व  ( Ecological importance )

किसी भौगोलिक क्षेत्र या पारितंत्र में निवास करने वाली सभी प्रजातियां आपस में कोई ना कोई क्रिया – प्रतिक्रिया अवश्य करती हैं जिसके फलस्वरूप स्वयं भी जीवित रहती है तथा दूसरों को भी जीवित रहने में सहायता करती है। अनेक जीव व प्रजातियां ऊर्जा को ग्रहण करके उस का संग्रहण करती है और वातावरण में गैसों व कार्बनिक पदार्थों को उत्पन्न व विघटित करती है। कृषि तंत्र अकशेरूकी जीव जंतुओं पर भी निर्भर है। ये अकशेरुकी जीव मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं। समुद्री क्षेत्र में पाए जाने वाले सी फूड बहुत से लोगों के लिए प्रोटीन के मुख्य स्रोत है। पेड़-पौधे, झाड़ियाँ और घास के मैदान अति वर्षा और बाढ़ से मिट्टी को कटने से बचाते है। आद्भूमि (wetlands) क्षेत्र, अतिवृष्टि में पानी को सोखने में मिट्टी की सहायता करते हैं। पेड़ पौधे हमारी प्राणवायु को स्वच्छ करते तथा जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य गैसों को अवशोषित करते हैं। कोरल रीफ (प्रवाल भित्तियाँ) और मैंग्रोव वन प्राकृतिक रूप से सुरक्षा प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं। ये समुद्र तटों को लहरों व तूफान से बचाते हैं। किसी पारिस्थितिक तंत्र में रहने वाली प्रजातियां उसका संरक्षण करने का प्रयास करती है। किसी परितन्त्र में प्रजातियों की संख्या जितनी अधिक होगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्वस्थ होगा।

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निष्कर्ष ( Conclusion)

प्रस्तुत लेख में हमने प्रकृति की अमूल्य धरोहर के बारे में जाना। वास्तव में प्रकृति की अमूल्य धरोहर – Priceless heritage of nature ही तो है। नदियाँ, जलप्रपात, झरने, वन पेड़, पौधे, जीव जंतु और सूक्ष्म जीव भी इस पृथ्वी को सुंदर और मनोरम बनाते हैं। साथ ही साथ ये सब मिलकर हमारे वातावरण, पर्यावरण और जलवायु को स्वच्छ व स्वस्थ बनाते हैं। पृथ्वी पर पेड़, पौधे व जीवों की लाखों प्रजातियां निवास करती है। किसी पारिस्थितिकी तंत्र में जितनी अधिक संख्या में प्रजातियां होंगी, वह क्षेत्र उतना ही अधिक समृद्ध होगा। किसी क्षेत्र की जलवायु वहाँ निवास करने वाली प्रजातियों की आपसी क्रिया से प्रभावित होती है। यह संसार जैवविविधता से परिपूर्ण है, चाहे अमेजन के जंगल हो, मैंग्रोव वन, थार का मरुस्थल , आद्रभूमि (वेटलैंड), पर्वत शृंखलाएँ, समुद्र, कोरलरीफ या आइलैंड हो। हर जगह की अपनी अलग ही सुंदरता है। जैवविविधता पर्यावरण के लिए बहुत ही लाभदायक है। जैवविविधता का सांस्कृतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक तथा पारिस्थितिकीय महत्त्व है। इसलिए ये आवश्यक है कि हम सभी व्यक्ति और समुदाय जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रयासरत हों। हमें स्वयं को प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने के बजाय इसकी देखभाल करनी चाहिए जैवविविधता की रक्षा, सरंक्षण और संवर्धन आज की जरूरत है। प्रकृति की अमूल्य धरोहर – Priceless heritage of nature को स्वस्थ और समृद्ध बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।

प्रश्नोत्तर FAQ

Q1: जैवविविधता का अर्थ क्या होता है?
Ans: जैव विविधता या बायोडायवर्सिटी दो शब्दों से मिलकर बना है—1- जैव (Bio) 2- विविधता(Diversity) अर्थात् जैव विविधता किसी भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को कहते हैं।

Q2: सर्वाधिक जैवविविधता कहां पाई जाती है।
Ans: सर्वाधिक जैवविविधता उष्णकटिबंधीय बर्षा वन जैसे अमेजॉन के जंगल में पाई जाती है, जो भूमध्य रेखा के उत्तर व दक्षिण में 28 डिग्री तक फैले हुए हैं।

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