पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीव जंतुओं का अपना महत्व है। मनुष्य पेड़ पौधे , सूक्ष्म जीव, पक्षी, जानवर आदि के सम्मिलित रूप से ही तो पर्यावरण बना है। इस जगत में पक्षियों का अलग ही संसार है। यह रंग-बिरंगे पक्षी अनायास ही किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, इन पक्षियों में कुछ बिल्कुल अलग प्रजाति के होते हैं। यह अति मांसाहारी प्रजाति के होते हैं इन्हें हिंसक पक्षी या रैपटर कहते हैं। हिंसक पक्षी भी पर्यावरण के मित्र ( Predatory birds are also friends of the environment ) कैसे होते हैं इस बारे में हम विस्तार से चलने का प्रयास कर रहे हैं –
हिंसक पक्षी भी पर्यावरण के मित्र ( Predatory birds are also friends of the environment )
हिंसक पक्षी परभक्षी होते हैं और उनका भोजन केवल मांसाहार ही है । उनके शरीर की बनावट शिकार पकड़ने के अनुकूल होती है इसलिए इन्हें रेप्टर कहा जाता है। इन पक्षियों की दृष्टि तीक्ष्ण होती है साथ ही पैर शक्तिशाली, पंजे नुकीले तथा चोंच वक्रित होती है। इन महत्वपूर्ण विशेषताओं के कारण ही यह पक्षी शिकार को पकड़कर मांसाहार का भक्षण करते हैं। उनकी चोंच नुकीली व घुमावदार होती है। चोंच का सिरा बहुत नुकीला तथा किनारे बहुत धारदार होते हैं। इससे ये अपने शिकार को फाड़ सकते हैं कुछ रेप्टर पक्षियों की चौंच छोटी तथा कुछ की लंबी होती है। यह उनके शिकार के प्रकार पर निर्भर करती है छोटे शिकार पकड़ने वाले पक्षियों की चौंच छोटी होती है तथा बड़े-बड़े शिकार पकड़ने वाले पक्षियों के चोंच बड़ी होती है। जैसे कैस्ट्रल नाम के पक्षी की चौंच छोटी व नुकीली होती है। तथा इसके शिकार भी छोटे होते हैं। यह चूहों, कीड़े मकोड़ों को अपना शिकार बनाता है यह अपनी चोंच से अपने शिकार के अगले हिस्से को मजबूती से पकड़ लेता है। एक और हिंसक पक्षी है- ईगल । इसकी चोंच भारी शक्तिशाली तथा लंबी होती है इसके शिकार भी बड़े-बड़े होते हैं तथा यह अपनी लंबी व मजबूत चौंच से मांस को टुकड़ों में फाड़ देता है। हिंसक पक्षियों के पंजों में उंगलियां होती हैं तथा उंगलियों में नुकीले नाखून होते हैं इन उंगलियों से वह भिन्न-भिन्न तरह के कार्य करते हैं। कुछ पक्षी आति मांसाहारी होते हैं उनके पंजों अत्यंत भारी होते हैं जैसे उल्लू, ईगल, हाक आदि । हिंसक पक्षियों को प्रकृति ने बहुत तीक्ष्ण दृष्टि प्रदान की है जिससे वे अपना शिकार आसानी से पकड़ सकते हैं। उनकी द्विनेत्री दृष्टि बहुत ही शक्तिशाली होती है। जिससे वह दाहिनी और बायीं ओर आंखों का उपयोग करके अपने शिकार को स्पष्ट देख सकता है । इन हिंसक पशुओं की एक खास बात यह है कि यह किसी वस्तु का त्रिआयामी छवि भी दे सकते हैं अर्थात वह वस्तु की गहराई भी नाप सकते हैं । उनकी आंखें बड़ी होती हैं और खोपड़ी के अगले हिस्से में इस तरह से होती हैं कि उन्हें हिलने डुलने का स्थान नहीं मिलता । अतः किसी दिशा में देखने के लिए उन्हें अपने सिर को घुमाना पड़ता है । शिकार को पकड़ने में आंखों का आकार भी महत्वपूर्ण होता है। उल्लू की दृष्टि रात के अंधेरे में भी बहुत तेज होती है। दिन के समय सक्रिय रहने वाले हिंसक पक्षियों जैसे चील, बाज, गिद्ध आदि की दृष्टि इतनी तेज होती है कि उन्हें बहुत दूर तक भी स्पष्ट दिखाई देता है। हिंसक पक्षियों को दो भागों में बांटा जा सकता है —
- पहले समूह में वे हिंसक पक्षी आते हैं जो दिन के समय सक्रिय रहते हैं जैसे- बाज, चील, गिद्ध, वल्चर, फाल्कन आदि। इन्हें फाल्कोनिफॉर्मिस वर्ग में रखा गया है।
- दूसरे समूह में वे हिंसक पक्षी आते हैं जो रात में सक्रिय रहते हैं इनमें उल्लू प्रमुख है इन्हें स्ट्रिजिफार्मिस वर्ग में रखा जाता है।
सामान्य रूप से सभी हिंसक पक्षियों को रेप्टर कहा जाता है इन सभी की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं जो उन्हें अद्वितीय बनाती हैं। संपूर्ण विश्व में लगभग 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। जो अलग-अलग स्थानों पर पाई जाती हैं।
कुछ हिंसक पक्षी (Some predatory birds)
बाज ( एक्सीपिटर) [Eagle (Accipiter)] :
एक्सीपिटर नामक बाज अपेक्षाकृत छोटे आकार का होता है, इसके पंख गोलाकार तथा पूंछ लंबी होती है। इस विशेषताओं के कारण यह अच्छी उड़ान भरने में सक्षम है इस प्रजाति का सर्वाधिक दिखाई देने वाला पक्षी शिकरा है।
ब्यूटियों :
बाज की यह प्रजाति काफी विशाल होती है। इसके पंख चौड़े व पूंछ छोटी होती है। यह हिंसक पक्षी शिकार के लिए काफी ऊंची उड़ान भरता है। साधारणतया सफेद आंख वाला ब्यूटियों सर्वाधिक दिखाई देता है।
चील (Eagle) :
चील भी एक विशालकाय पक्षी है इसकी नजर भी बहुत सूक्ष्म पर तेज होती है। इसकी चोंच बड़ी व पंख शक्तिशाली होते हैं। भारत में गोल्डन ईगल, स्टेपी ईगल व इंपीरियल ईगल पक्षी पाए जाते हैं।
फाल्कन (Falcon) :
इस हिंसक पक्षी की उड़ने की गति बहुत तेज होती है। ये फ़ेल्कोनिडी परिवार का सदस्य है। इस पक्षी के पंख नुकीले व संकरे होते हैं तथा चौंच नुकीली व वक्रित होती है पंखों की विशेष बनावट के कारण इसकी गति अति तीव्र होती है। सबसे तीव्र गति का फाल्कन पेरिग्रीन फाल्कन है जो शिकार के समय में लगभग 320 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता है भारत में इसे शाहीन फॉल्कन के नाम से जाना जाता है भारत में लेसर कस्ट्रल और कॉमन कस्ट्रल नामक फाल्कन भी पाए जाते हैं।
हैरियर (Harrier) :
यह हिंसक पक्षी मध्यम आकर के होते हैं तथा अधिक ऊंची उड़ान नहीं भरते हैं। यह हिंसक पक्षी घास के मैदानों तथा दलदल वाले स्थान में पाए जाते हैं। जाड़े के समय में हैरियर भारत की ओर प्रवास करते हैं। इस हिंसक पक्षी के चेहरे पर डिस्क होती है जिसकी सहायता से यह अपने शिकार की आवाज को स्पष्ट रूप से सुन सकता है।
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उल्लू ( Owl ) :
यह हिंसक पक्षी रात के समय पूर्ण रूप से सक्रिय होता है। यह पेड़ों की डालियों पर पत्तों में बैठे रहते हैं तथा शिकार की खोज में लगे रहते हैं। यह शिकार में करने में इतने चतुर होते हैं कि उनके पंखों की फड़फड़ाहट भी सुनाई नहीं देती है।
गिद्ध (vulture) :
गिद्ध आकार में सामान्य से बड़ा होता है इसे पर्यावरण का सफाई कर्मी माना जाता है क्योंकि यह शहरों अथवा गांवों से बाहर फैंके गए मृत जीव को सफाई से खाकर समाप्त कर देते हैं । मृत जीव ही गिद्ध का भोजन है। यह आसमान में घंटे तक ऊंचाई पर उड़ते रहते हैं तथा भोजन की तलाश करते रहते हैं। उनकी दृष्टि बहुत ही तीव्र होती है किसी मृत जीव को यह बहुत दूरी से ही देख लेते हैं तथा शिकार पर झपटकर शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं।
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आसप्रे ( Asprey ) :
यह हिंसक पक्षी अखिल विश्व में पाया जाता है। इस हिंसक पक्षी की यह विशेषता होती है कि यह विश्व में एकमात्र पक्षी है जो मछलियों का शिकार करता है।
काइट (Kite) :
यह हिंसक पक्षी मध्यम आकार का होता है । अपनी विशेष बनावट के कारण यह बड़े आनंद से आसमान में उड़ता है । अधिकतर पूरी दुनिया में ब्लैक काइट या काली चील पाई जाती है । भारत में विशेष कर दक्षिण भारत में ब्राह्मणी काइट पाई जाती है।
पर्यावरण के लिए लाभकारी ( Beneficial for the environment ) :
हिंसक पक्षी भी पर्यावरण के मित्र – Predatory birds are also friends of the environment हैं । तथा इसीलिए इन्हें पर्यावरण व वातावरण के लिए लाभकारी माना गया है । यह हिंसक पक्षी देखने में बहुत डरावने लगते हैं लेकिन यह पर्यावरण व प्रकृति के लिए लाभकारी सिद्ध हुए हैं। यह हिंसक पक्षी पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं और जैविक विभिन्नताओं के महत्वपूर्ण प्राकृतिक अंग हैं। यह परभक्षी का कार्य करके पर्यावरण की स्वास्थ्य सुरक्षा करते हैं तथा उनके बारे में महत्वपूर्ण संकेत भी देते हैं। इनका भोजन ही पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है। गिद्ध पक्षी वातावरण में पाए जाने वाले मृत जीव को खाकर समाप्त करता है जिससे वातावरण स्वच्छ होता है। खरगोश का शिकार करने वाला हॉक पक्षी खरगोश की संख्या को नियमित और नियंत्रित करता रहता है क्योंकि अगर खरगोश की आबादी बढ़ेगी तो यह पेड़ पौधों व फसलों को नष्ट कर देंगे। हमारे पर्यावरण में हिंसक पक्षियों के अलावा ऐसे बहुत पक्षी पाए जाते हैं जो कीड़े मकोड़ों खाते रहते हैं। यह फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीटों व टिड्डी आदि को खा जाते हैं। इसके अलावा यह पौधों में परागण करने में सहायता करते हैं तथा यह पक्षी हिंसक पक्षियों का भोजन बनते हैं। अतः पर्यावरण में उपस्थित खाद्य श्रृंखला को यह हिंसक पक्षी बनाए रखते हैं। इसके अलावा लाल पूंछ वाला बाज छोटे-छोटे पक्षियों जैसे गौरैया को अपने घोंसले में रहने की अनुमति देता है जो सहजीविता का एक अच्छा उदाहरण है। अतः हम कह सकते हैं कि यह हिंसक पक्षी पर्यावरण के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संयुक्त गणराज्य व सिंगापुर जैसे कई देशों में यह हिंसक पक्षी लोगों के लिए रोजगार का साधन भी बनते हैं। इन हिंसक पक्षियों को अभयारण्य में रखकर इनका प्रदर्शन किया जाता है।
हिंसक पक्षियों के निवास स्थान (Habitats of birds of prey) :
इन हिंसक पक्षियों के निवास स्थान भी विशिष्ट होते हैं । विभिन्न प्रकार के हिंसक पक्षियों के आवास की विभिन्न होते हैं तथा प्राकृतिक रूप से यह सुविधाजनक होते हैं। यह ऐसी जगह अपना घोंसला बनाते हैं जहां पर उनके लिए अनुकूल परिस्थितियों पाई जाती हैं तथा उनके दैनिक कर्म में कोई बाधा ना हो। यह हिंसक पक्षी रेतीले मरुस्थलों, बर्फीले स्थान, घने जंगलों, पहाड़ों तथा चट्टानों तथा कुछ घनी आबादी में पाए जाते हैं। हिंसक पक्षियों को जीवित रहने के लिए भोजन के रूप में शिकार बहुत महत्वपूर्ण है तथा शिकार पकड़ने के लिए उनके शरीर में महत्वपूर्ण अंगों का होना अति आवश्यक है। मुख्यतः हिंसक पक्षियों के घोसले एकांत में होते हैं। इन पक्षियों के घोसले इनकी एक विशिष्ट पहचान बन जाते हैं यदि यह स्थान उजड़ जाएं तो उन्हें अनुकूल परिस्थितियों नहीं मिल पाती, इस प्रकार खाद्य श्रृंखला भी अस्त व्यस्त होने लगती है। आर्द्र-भूमियों वाले क्षेत्र में एक विशेष मौसम में इन हिंसक पक्षियों को शिकार हेतु जलीय जीव जंतु प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यह हिंसक पक्षी स्थानीय व प्रवासी दोनों प्रकार के होते हैं। जाड़े के मौसम में भारत की कुछ परिचित आर्द्र – भूमि क्षेत्र जैसे भरतपुर राजस्थान, समुद्र तट गुजरात, चिल्का झील उड़ीसा आदि में मध्य एशिया व यूरोप से हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं इस समय इन प्रवासी पक्षियों के ऊपर हिंसक पक्षियों को मंडराते हुए देखा जा सकता है।
हिंसक पक्षियों का संरक्षण ( Protection of predatory birds ) :
हिंसक पक्षियों की पर्यावरण संतुलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है । जलवायु परिवर्तन व मानव निर्मित बाधाओं के कारण इनकी संख्या लगातार घटती जा रही है । अतः इनका संरक्षण करना अति आवश्यक हो गया है। गिद्धों का संरक्षण भी इसी मुहिम का हिस्सा है। गिद्धों में सामान्य रूप से पाए जाने वाला व्हाइट रंप्ट वल्चर से जिसे जिप्स बेंगालोसिंस भी कहा जाता है , आईयूसीएन के रेड डाटा लिस्ट में संकटग्रस्त प्रजातियों में लिस्ट हुआ है। इसकी संख्या लगभग 99.7% घट गई है। इनके संकटग्रस्त होने का मुख्य कारण जानवरों की मृत शरीरों में पीड़ाहर औषधि डाइक्लोफिनेक की उपस्थिति है जो इन गिद्धों के गुर्दों को नष्ट करती है। सन 2006 में पशु चिकित्सा विभाग ने डाइक्लोफिनेक नामक औषधि को पशुओं को लगाने से रोका। नागालैंड में वहां स्थानीय अधिकारियों ने फाल्कन नमक हिंसक पक्षी के शिकार करने पर प्रतिबंध लगाया। भारत के कई राज्य में लगभग 8 गिद्ध संरक्षण केंद्र खोले जा चुके हैं। जिनमें लगभग 396 गिद्धों का संरक्षण किया जा रहा है। इन संरक्षण केंद्रों में इन गिद्धों की प्रमुख प्रजातियां जैसे इंडियन लांग बिल्ड, सिलेंडर बिल्ड तथा व्हाइट रंप्ड आदि का संरक्षण किया जा रहा है। विकसित होते हुए भारत में शहरों से लेकर गांवों तक हर जगह बिजली के हाई वोल्टेज लाइन लगी हुई है, इसके अलावा ऊंची ऊंची पवन टरबाइन भी लगी हुई हैं। जब यह पक्षी अपने शिकार के लिए ऊंची उड़ान भरते हैं, तो वह इन तारों व टरबाइनों से टकराकर मर जाते हैं। जंगलों के काटने से भी उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर संकट हो गया है।
निष्कर्ष (conclusion) :
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंसक पक्षी भी पर्यावरण के मित्र – Predatory birds are also friends of the environment हैं। प्रकृति में हर प्राणी का अलग-अलग महत्व है। यह पक्षी अपनी भोजन संबंधी आदतों के द्वारा अनायास ही पर्यावरण को फायदा पहुंचाते हैं। यह वातावरण में पाए जाने वाले मृत शरीरों का भक्षण करते हैं। इससे वातावरण में दुर्गंध व रोगजनक कीटाणु नहीं फैलते हैं। यह पक्षी पर्यावरण की खाद्य श्रृंखला को जीवंत बनाए रखने में मदद करते हैं। मानव के विकास क्रम में आगे बढ़ाने के साथ-साथ जाने अनजाने में इन हिंसक पक्षियों का धीरे-धीरे विनाश होता जा रहा है। परिणामस्वरुप पर्यावरण में हानिकारक तत्व की उपस्थिति बढ़ रही है, जिससे नए-नए हानिकारक बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। यदि पारिस्थितिक रूप से पर्यावरण को संतुलित रखना है तो इन हिंसक पक्षियों का संरक्षण करके इन्हें सुरक्षित करना होगा।