किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे बच्चा न तो छोटा ही होता है और न ही इतना समझदार कि भावी जीवन की कठिनाइयों को समझ सके। अनेक मनोवैज्ञानिकों ने किशोरावस्था के बारे मे बहुत कुछ बताया है । लेकिन सभी मनोवैज्ञानिकों का एक मत तो साझा है कि किशोरावस्था में भटकाव बहुत होता है आइये इस लेख मे हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि किशोरावस्था में भटकाव क्यों है और इसका निराकरण ( kishoraavastha me bhatakaav aur niraakaran } क्या है अर्थात इस भटकाव को दूर करने के उपाय क्या क्या हो सकते हैं। —
किशोरावस्था मे भटकाव और निराकरण- kishoraavastha me bhatakaav aur niraakaran
भटकाव हमारे जीवन मे कभी भी आ सकता है, भटकाव वह स्थिति है जब हम अपने कर्तव्यों से विमुख होकर ऐसे कार्य मे लग जायें जो हमे पतन की ओर ले जाये। ये भटकाव ही हमें उन्नति के मार्ग पर नहीं जाने देता वरन ऐसे कार्यो मे लगा लेता है जिससे हम गलत संगति की ओर जाते हैं और अपयश के भागी बनते हैं। किशोरावस्था में ऊर्जा अपने उच्चतम स्तर पर होती है। इस समय बच्चे मे शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। जिससे बच्चे में रासायनिक क्रियाओं मे असंतुलन होता है । जिससे बच्चे के भटकने की प्रबल संभावना रहती है । अगर बच्चा अपने मार्ग से भटक जाये तो उसका भविष्य अंधकार मे जा सकता है।
किशोरावस्था में मन की स्थिति ( kishoraavastha mein man kee sthiti )
बाल्यावस्था जव धीरे धीरे जा रही होती है तो किशोरावस्था आ रही होती है, तो बच्चा अपनेआप को कुछ बड़ा महसूस करने लगता है । किशोरावस्था में मन की स्थिति बहुत विचित्र होती है या यूँ कहें कि मन बहुत संवेदनाओं से भरा होता है । और कई तरह की चिंता उसके मन मे घूमती रहती है जैसे – हम आगे जाकर क्या करेगें , और हम ये नहीं कर पाये तो लोग क्या कहेंगे , हमारे पास वे सभी सुविधायें होनी चाहिए जो दूसरों के पास है। वो मन ही मन मे सभी कुछ पा लेना चाहता है जिसका उसके जीवन में आभाव रहा है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्टेनली हाल ने बताया कि – “किशोरावस्था आंधी तूफान की अवस्था है | ” इस अवस्था में बच्चा इतना नहीं समझ पाता कि वह क्या करें और जब बह मनमुताविक सफलता हासिल नहीं कर पाता तो बह अपनी कमियों का सारा दोष दूसरों पर डालता है। इस अवस्था में ही सारे अवगुण उसमे प्रवेश करते हैं। अगर इस समय मन कुंठाग्रस्त हो जाये तो वह सारे समाज, परिचितों, रिश्तेदारों को अपना दुश्मन समझने लगता है। ऐसी स्थिति में माता पिता को उनकी गलत बातों में न आकर परिस्थितियों को समझना चाहिए और बच्चों को समझाने का प्रयास करना चाहिए। असफलताएं ही कुंठा लेकर आती है । दूसरों से अकारण बैर रखना ही कुंठा है।
भटकाव दूर करने के उपाय
किशोरावस्था में बच्चों की मन:स्थिति में भटकाव से मुक्ति के कुछ उपाय निम्न हैं–
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अभिभावकों व अन्य बड़ों द्वारा मार्गदर्शन
किशोरावस्था में बच्चों के मन का चंचल होना स्वाभाविक ही है। कुछ बच्चों का पढ़ने में बिल्कुल भी मन नहीं लगता। वे मौज-मस्ती मे समय व्यतीत करने लगते हैं। या वे व्यर्थ के कार्यों में अपना बहुमूल्य समय नष्ट करने में लग जाते हैं । इसके विपरीत कुछ बच्चे अतिगम्भीरता के शिकार हो जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में बच्चों को अभिभावकों के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। किशोरावस्था में बच्चों के मन के भटकाव को रोकने में माता पिता ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
अच्छी पुस्तकों का पठन
अच्छी पुस्तकें सबसे अच्छी मार्गदर्शक हैं। बाल्यकाल से ही बच्चों में पुस्तकों को पढ़ने की आदत डालनी चाहिए । प्रेरणादायक, धार्मिक व महापुरुषों से सम्बन्धित पुस्तके पढ़ने से मन में अच्छे विचार आते हैं। बच्चों का चंचल मन एकाग्र और शान्त होता है तथा विपरीत परिस्थितियों में स्वंय के लिये उचित मार्ग खोज पाते हैं।
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सोशलमीडिया से यथासम्भव दूरी
आज के युग में मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया ने बच्चों, युवा, किशोरों व बुजुर्गों के जीवन में एक महत्वपूर्ण जगह बना ली है। बच्चों व किशोरों का बहुत अधिक समय स्मार्टफोन व सोशलमीडिया में व्यतीत होने लगा है। बच्चों में स्मार्टफोन व सोशल मीडिया की इतनी लत लग चुकी है कि वह अपने घर परिवार के सदस्यों तथा रिश्तेदारों से बात करने में भी जी चुराते हैं । लंबे समय तक सोशल मीडिया देखने से बच्चों में मानसिक विकार उत्पन्न होने लगते हैं। पूरा दिन युट्युब, फेसबुक, इंस्टाग्राम की रील और वीडियो देखने में तथा रील और वीडियो बनाने मे अपना समय बर्बाद करते हैं। तथा अपने शिक्षा में उन्नति का रास्ता अवरूद्ध कर देते हैं। सोशल मीडिया से यथासंभव दूरी बनाना बहुत ही जरूरी है।
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मन से ईर्ष्या और आत्मग्लानि त्यागना
मन के भटकाव के कारण कुछ किशोर किशोरियां शैक्षिक क्षेत्र में उन्नति नहीं कर पाते तो वे सफल लोगों से ईर्ष्या करने लगते हैं। इसके विपरीत कुछ छात्र कठिन परिश्रम करने के बावजूद भी अपनी मन मुताबिक सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं, तो उन छात्रों में आत्मग्लानि का भाव उत्पन्न हो जाता है। यह भाव उनमें कुंठा को जन्म देता है। ऐसी स्थिति में हमें मन से ईर्ष्या और आत्मग्लानि के भाव को निकाल कर सकारात्मक सोच के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ना चाहिए। जिससे हमें निश्चय ही सफलता हासिल होगी। Join my Whatsapp Channel
गलत संगति छोड़ना
किशोरावस्था में बच्चों के मन के भटकाव का सबसे प्रमुख कारण गलत दोस्तों की संगति ही है। ऐसे दोस्त बच्चों को आनंद की दुनिया के ख्वाब दिखाते हैं और व्यर्थ के कार्यों में दिनभर लगाए रहते हैं। ऐसे दोस्त ना तो स्वयं पढ़ते हैं और ना ही औरों को पढ़ने देते हैं। किशोरावस्था में बच्चे ऐसे गलत दोस्तों की संगत में आकर अपना भविष्य बर्बाद करने में लग जाते हैं। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी रखें और गलत आदतों वाले दोस्तों से बच्चों की दूरी बनाए रखें।
निष्कर्ष
प्रस्तुत लेख में हमने किशोरावस्था में भटकाव और निराकरण kishoraavastha me bhatakaav aur niraakaran के बारे में जाना तथा हमने किशोरावस्था के भटकाव और निराकरण – kishoraavastha me bhatakaav aur niraakaran के उपाय के बारे में भी चर्चा की। हमने जाना कि किशोरावस्था में मानसिक और शारीरिक बदलाव के कारण चंचलता तो आती ही है और मन का भटकाव भी होता है। लेकिन इस चंचलता रूपी ऊर्जा को सही दिशा में ले जाने की जरूरत है ।
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