भारतीय आचार विचार, संस्कार व हिंदुओं के जीवन शैली का वर्णन करने वाले साहित्य स्मृतियाँ ही तो हैं । हिंदू समाज और परिवारों के व्यवस्थित संचालन के लिए अनेक ऋषि मुनियों ने विधि और निषेध की अपनी अपनी आचार संहिता तैयार कीं जिसे हम लोग स्मृतियों के नाम से जानते हैंं। राजर्षि मनु तथा महर्षि याज्ञवल्क्य जी की स्मृतियों का हमारे हिंदू समाज में बहुत ही प्रतिष्ठित स्थान है। देश काल और परिस्थितियों के अनुसार अनेक ऋषि – मुनियों, महर्षियों ने विभिन्न स्मृतियों की रचना की परंतु हम अपने इस लेख में प्रमुख अठारह स्मृतियों का परिचय – athaarah smrtiyon ka parichay देने की कोशिश करेंगे।
स्मृतियों का परिचय ( athaarah smrtiyon ka parichay)
स्मृतियों का मनुष्य के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं । स्मृतियों की रचना के पीछे ऋषि मुनियों का यह ध्येय था कि मनुष्य अपने धर्म को समझ सके और उसके अनुसार शुद्ध आचरण करे। मनुष्य अपने जीवन में पाप-पुण्य, नीति-अनीति को पहचानने का विवेक प्राप्त कर सके तथा मनुष्य अपने जीवन में देव, पितृ, मातृ और गुरू आदि के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें और उन सबके प्रति अपने कर्तव्यों का भली-भांति निर्वाह कर सके। अतः स्मृतियां प्रत्येक मनुष्य को आचरणवान बनने की शिक्षा देती हैं। मनुष्य अच्छे आचरण और अपने कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक पालन करके ही ईश्वर प्राप्ति के मार्ग को सुलभ बना सकता है। श्री नाभादास जी के अनुसार –
मनुस्मृति अत्रे बैष्नवीय हारीतक यामी।
जाग्यबल्कय अंगिरा सनैश्चर सँवृतक नामी।।
कात्यायनि सांडिल्य गौतमी बसिठी दासी।
सुरगुरु साताताप पाराशर क्रतु मुनि भाषी।।
आसा पास उदार धी परलोक लोक साधन्न सो।
दस आठ सुमृति जिन उच्चरी तिन पाद सरसिज भाल मो।
अर्थात नाभादास जी कहते हैं कि मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, यम, याज्ञवल्क्यः, अंगिरा, शनि, संवर्तक, कात्यायन, शांडिल्य, गौतम, वशिष्ठ, दक्ष, बृहस्पति, शातातप, पराशर तथा महर्षि क्रतु नामक जिन अठारह ऋषियों ने स्मृतियों की रचना की है, उनके चरणों में मैं अपना मस्तक रखता हूँ। आशा तृष्णा के बंधन से छुड़ाने के लिए उदार बुद्धि वाले ऋषियों ने स्मृतियाँ बनायीं हैं, वे इस लोक में उन्नति और परलोक में कल्याण का साधन है।।
अठारह स्मृतियों का परिचय – athaarah smrtiyon ka parichay
प्रमुख अठारह स्मृतियों का परिचय – athaarah smrtiyon ka parichay निम्न है-
मनुस्मृति
प्राचीन समय में लिखे गये हिंदू धर्म से सम्बंधित अनेक धर्मग्रंथो और संविधान शास्त्रों में मनुस्मृति का स्थान सर्वोच्च है। मनुस्मृति राजर्षि मनु के द्वारा लिखी गई है। मनुस्मृति का सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व है। राजर्षि मनु भी सभी धर्मशास्त्रकारों में सबसे अधिक प्रतिष्ठित हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है- “ प्रधान्यं हि मनोः स्मृतम्। ” अर्थात विश्व के सभी मानव प्रधान धर्मशास्त्रों में राजर्षि मनु द्वारा लिखी गई मनुस्मृति सबसे अधिक प्रतिष्ठित है। मानव के संपूर्ण जीवन में धर्म-कर्मों से संबंधित निर्णय लेने के लिए मनुस्मृति को सर्वोपरि माना गया है। मनुस्मृति में बारह अध्याय हैं। मनुस्मृति में बताए गए उपदेश और विधि विधान सभी लोगों के जीवन के लिए कल्याणकारी हैं।
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अत्रिस्मृति
अत्रिस्मृति भारतीय धर्मशास्त्र में काफी पुरानी स्मृति है। महर्षि अत्रि, अत्रिस्मृति के प्रणेता हैं। अत्रि स्मृति और अत्रि संहिता महर्षि अत्रि के द्वारा ही लिखी गई हैं। अत्रि स्मृति में वैदिक काल के समय के नियम, आचार और सामाजिक जीवन से जुड़े आचार-विचारों का संग्रह है। महर्षि अत्रि ब्रह्माजी के मानसपुत्र हैं। ये दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण हैं। महर्षि अत्रि की गणना सप्त ऋषियों में होती है। देवी अनसूया महर्षिः अत्रि की पत्नी हैं ।
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विष्णुस्मृति
विष्णुस्मृति में भगवान श्री हरि विष्णु द्वारा पृथ्वी देवी को दिया गया उपदेश का वर्णन है। विष्णु स्मृति को वैष्णव धर्मशास्त्र भी कहा जाता है । यह अनेक सूत्रों और श्लोकों में उपनिषद के रूप में वर्णित है। इस स्मृति में एक सौ अध्याय समाहित हैं। विष्णु स्मृति को भी भगवत गीता की तरह ही भगवान की वाणी कहा गया है।
हारीतस्मृति
हारीतस्मृति महर्षि हारीत के द्वारा लिखी गई है। महर्षि हारीत भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। महर्षि हारीत ने तीन स्मृतियां लिखी – हारीत स्मृति, लघुहारीत स्मृति तथा वृद्धहारीत स्मृति। महर्षि हारीत ने अपनी हारीतस्मृति में भगवान विष्णु की उपासना पद्धति और मंत्रों का बहुत सुंदर वर्णन किया है। किशोरावस्था में भटकाव क्यों है और इसका निराकरण
यमस्मृति
यमस्मृति की रचना धर्मराज यम ने की थी। धर्मराज यम भगवान सूर्य और देवी संज्ञा के पुत्र हैं। यमराज जीवों को उनके कर्म के अनुसार अच्छा या बुरा फल प्रदान करते हैं। अपने कर्मों का फल भोगकर जीव का हृदय शुद्ध और मन शांत हो जाता है तथा वह भगवत प्राप्ति के मार्ग में प्रवृत हो जाता है। धर्मराज यम ने अपनी स्मृति में जीवन को अच्छे कर्म करने तथा बुरे कर्मों से दूर रहने का वर्णन किया गया है , तथा जो जीव बुरे कर्मो में लिप्त रहते हैं उनको बुरे कर्मों से दूर रहने तथा अपने कर्मों के प्रायश्चित का मार्ग बताया है। इनके द्वारा लिखी हुई तीन स्मृतियां हैं- यमस्मृति, लघुयमस्मृति एवं बृहद यमस्मृति।
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याज्ञवल्क्यस्मृति
याज्ञवल्क्यस्मृति के रचयिता श्री याज्ञवल्क्य जी थे। याज्ञवल्क्य जी वैदिक काल के एक महान ऋषि और महान दार्शनिक थे। इन्होंने शतपथ ब्राह्मण जैसे महान ग्रंथ लिखे। ये रामकथा के प्रवक्ता, अध्यात्मवेत्ता तथा गूढ़ तत्व का ज्ञान रखने वाले आचार्य थे। याज्ञवल्क्य जी के द्वारा रचित तीन स्मृतियाँ हैं – याज्ञवल्क्यस्मृति, योगियाज्ञवल्क्यस्मृति, बृहद योगियाज्ञवल्क्यस्मृति। याज्ञवल्क्यस्मृति में आचार, व्यवहार और प्रायश्चित से सम्बन्धित तीन अध्याय हैं। प्रकृति की अमूल्य धरोहर
शनैश्चरस्मृति
शनैश्चरस्मृति के रचयिता शनिदेव हैं। शनि देव सूर्य देवता और छाया के पुत्र हैं। शनि देव को न्याय के देवता माना जाता है।
कात्यायनस्मृति
कात्यायनस्मृति की रचना महर्षि कात्यायन ने की थी। महर्षि कात्यायन अति प्राचीन धर्मशास्त्रकारों में से हैं। इन्होंने अपनी कात्यायनस्मृति में प्राचीन भारत में प्रचलित व्यवहार और व्यवहार विधि के नियमों के बारे में लिखा है। महर्षि कात्यायन ने अपने रचित ग्रंथों में स्त्रीधन की मीमांसा बहुत प्रमाणिक की है। भारतीय उपमहाद्वीप में जैवविविधता का सच्चा खजाना
अंगिरास्मृति
अंगिरा स्मृति के रचयिता महर्षि अंगिरा है। महर्षि अंगिरा ब्रह्मा जी के पुत्र हैं । उनकी पत्नी का नाम श्रद्धा था जो की कर्दम ऋषि की पुत्री थीं। इनके तीन पुत्र थे – देवगुरु बृहस्पति, उतथ्य तथा संवर्त। इनकी चार पुत्रियाँ – सिनीवाली, कुहू, राका तथा अनुमति थीं। महर्षि अंगारा चार वेदों में से एक अथर्ववेद के प्रवर्तक हैं, इसीलिए इन्हीं अथर्वा भी कहा जाता है। इनका स्थान सप्त ऋषियों में आता है। मुण्डकोपनिषद भी इनकी ही रचना है। मुण्डकोपनिषद मैं इन्होंने बताया कि – “ भिद्यते ह्रदयग्रन्थिश्च्छद्यन्ते सर्वसंशयाः। क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे। ” अर्थात उस परम ब्रह्म परमेश्वर को जान लेने के बाद जीवात्मा के हृदय की सभी गाठे खुल जाती हैं, और उसका सभी संशय दूर हो जाता है तथा जीवात्मा के सभी शुभ अशुभ कर्मों का नाश हो जाता है और व्यक्ति परम लोक बैकुंठ को प्राप्त होता है। अंग्गिरास्मृति में मुख्य रूप से ग्रहस्थ जीवन के सदाचार, गाय की सेवा और प्रायश्चित के विधान का वर्णन है। Follow my Whatsapp Channel
संवर्तस्मृति
संवर्तस्मृति के रचयिता महात्मा संवर्त हैं। महात्मा संवर्त महर्षि अंगिरा के पुत्र और देवगुरु बृहस्पति के छोटे भाई हैं। अध्यात्मवेत्ताओं और धर्माचरण के ग्रन्थों को प्रतिपादित करने वालों में महात्मा संवर्त का विशेष स्थान है। ये परम शिवभक्त तथा गायत्री के महान उपासक थे। मन्त्रद्रष्टा वामदेव और मार्कण्डेय ऋषि इनके शिष्य थे। इन्होंने अपनी स्मृति में वर्णाश्रमधर्म, प्रायश्चित , दान की महिमा तथा गायत्रीजाप का वर्णन किया है।
शाण्डिल्यस्मृति
शाण्डिल्यस्मृति के रचयिता परम भागवत ऋषि शाण्डिल्य जी हैं। ऋषि शाण्डिल्य जी का भगवान् नारायणः की भक्ति में पूर्ण विश्वास था। इन्होंने अपने भक्तिसूत्र मे लिखा – “सा परानुराक्तिरीश्वरे |” अर्थात ईश्वर में परम अनुराग ही भक्ति है। शाण्डिल्यसंहिता मे इन्होंने बताया – “ मुख्यं तस्य हि कारुण्यम्। ” अर्थात ईश्वर का मुख्य अच्छा करुणा करना या दयालुता है। भगवान विष्णु के परम भक्त होने के कारण उनकी शाण्डिल्यस्मृति वैष्णव लोगों की परम आचार संहिता है।
गौतमस्मृति
गौतमस्मृति के रचयिता महर्षि गौतम हैं। महर्षि गौतम का स्थान सप्तऋषियों में है। ये ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। और उनकी पत्नी का नाम देवी अहिल्या था। महर्षि गौतम ने दो प्रसिद्ध ग्रंथ – धर्म सूत्र और गौतमस्मृति की रचना की। इनके द्वारा रचित स्मृति में धर्म से संबंधित आचरण की महिमा, पंचयज्ञ , गौमहिमा, भोजनविधि, तीर्थमहिमा, भक्ति की महिमा का वर्णन है।
वशिष्ठस्मृति
वशिष्ठस्मृति रघुकुल के कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के द्वारा रचित है। महर्षि वशिष्ठ ब्रह्मा जी के मानस पत्रु थे, और उनकी पत्नी का नाम देवी अरुंधति था । देवी अरुंधति पतिव्रता स्त्रियों की आदर्श हैं। भगवद्भक्तों में इनकी गणना होती है। महर्षि वशिष्ठ के दो धर्मग्रंथ वशिष्ठधर्मसूत्र और वशिष्ठस्मृति प्रसिद्ध है। इन ग्रंथो में महर्षि वशिष्ठ जी ने धर्मशास्त्रों तथा आचरण संबंधी मर्यादाओं का वर्णन किया है। Follow my Whatsapp Channel
दक्षस्मृति
दक्षस्मृति के रचयिता प्रजापति दक्ष हैं, यह ब्रह्मा जी के पुत्र थे तथा प्रजापतियों के नायक थे। उनकी पत्नी का नाम प्रसूति था जो राजर्षि मनु की पुत्री थीं। प्रजापति दक्ष भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। इनके द्वारा लिखित दक्षस्मृति में सात अध्याय समाहित हैं। इन सातों अध्यायों में गृहस्थधर्म, सदाचार, अध्यात्म और योग से सम्बन्धित ज्ञान समाहित है।
बृहस्पतिस्मृति
बृहस्पति स्मृति के रचयिता देवों के गुरु आचार्य बृहस्पति हैं। आचार्य बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। आचार्य बृहस्पति द्वारा रचित बृहस्पति स्मृति संक्षिप्त है, लेकिन संक्षिप्त होने के बावजूद भी यह बहुत ही उपयोगी है। बृहस्पति स्मृति में गोदान भूमि दान और भगवत भक्ति की महिमा का वर्णन है।
शातातपस्मृति
महर्षि शातातप, महर्षि दरभंग के गुरु थे। और महर्षि याज्ञवल्क्य जी ने भी विशिष्ट धर्मशास्त्रकारों में महर्षि शातातप जी का वर्णन किया है। कहा जाता है कि इन्होंने अनेक प्रकार के तपों का अनुष्ठान किया, और तप करते-करते बहुत ही कमजोर हो गए इसीलिए इन महर्षि का नाम शातातप पड़ गया। महर्षि शातातप द्वारा रचित तीन स्मृतियाँ – लघुशातातप, बृहदशातातप और शातातपीय कर्मविपाकसंहिता हैं। इनकी स्मृतियों में विशेषकर पातकों, उपपातकों तथा महापातकों का विवरण तथा उनका प्रायश्चित वर्णित है।
पराशरस्मृति
पराशरस्मृति के रचयिता महात्मा पराशर जी हैं। कहा जाता है कि – “ कलौ पाराशरः स्मृतः ” अर्थात कलयुग में महात्मा पराशर के वचनों का बहुत ही महत्व है। महात्मा पराशर जी श्री वेदव्यास जी के पिता थे। विष्णु पुराण और होराशास्त्र पराशर जी की रचना है। इनकी पराशरस्मृति और वृहद पराशरस्मृति नाम की दो स्मृतियां प्राप्त होती हैं।
क्रतुस्मृति
क्रतुस्मृति के रचयिता महर्षि क्रतु हैं। महर्षि क्रतु ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं। यह धर्म को जानने वाले, सत्यवादी और व्रतपरायण महात्मा थे। महर्षि क्रतु ने धर्म की व्यवस्था के लिए क्रतुस्मृति का निर्माण किया।
निष्कर्ष
विभिन्न देश काल में हिंदू धर्म की व्यवस्था और स्थापना के लिए विभिन्न महर्षियों, राजर्षियों तथा आचार्याओं ने विभिन्न स्मृतियों की रचना की। हमने प्रस्तुत लेख में प्रमुख अठारह स्मृतियों का परिचय – athaarah smrtiyon ka parichay जाना। इन स्मृतियों मे सदाचारी जीवन जीने के नियम, आचार, व्यवहार, उपासना पद्धति, गृहस्थाश्रम के सदाचार, गोसेवा, गायत्रीजाप की महिमा, दान की महिमा और प्रायश्चित का वर्णन किया गया है।
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