वर्तमान समय में हमारी दैनिक जीवनचर्या में प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का अधिक उपयोग हो रहा है। या यूं कहें कि सुबह जागने से लेकर रात में सोने तक हम अनगिनत रूपों में प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं। प्लास्टिक हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। ऐसी विकट परिस्थितियों में यह समझना जरूरी हो गया है कि क्या हमारे शरीर पर प्लास्टिक का कोई प्रभाव पड़ता है? शोध बताते हैं कि प्लास्टिक के माइक्रो कण हमारे शरीर के अंदर पाए गए हैं। तो अब यह प्रश्न उठता है कि क्या हम प्लास्टिक निगल रहे हैं? – Are we swallowing plastic! इस लेख में हम इस समस्या पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
क्या हम प्लास्टिक निगल रहे हैं! – Are we swallowing plastic!
प्लास्टिक के बारीक कण वातावरण में सर्वत्र व्याप्त है। हाल ही में मानव फेफड़े के सभी भागों में, मानव शरीर तथा मानव रक्त में माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए हैं। माइक्रोप्लास्टिक वैज्ञानिक हीथर लेस्ली और उनके सहयोगियों ने नीदरलैंड में 22 स्वस्थ लोगों में से 17 के रक्त के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाया। पिछले वर्ष 2022 में इन्वायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक शोध पत्र में बताया गया कि बहुत से वैज्ञानिकों को ये संदेह है कि ये माइक्रोप्लास्टिक मानव रक्त प्रवाह में अवशोषित हो सकते हैं। प्लास्टिक हमारे चारों ओर व्याप्त है। ये टिकाऊ, बहुमुखी और निर्माण के लिए सस्ता है। ये हमारे कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन, इलेक्ट्रॉनिक्स, टायर, पैकेजिंग और दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं में उपयोगी है। वर्तमान समय में शोधकर्ता माइक्रोप्लास्टिक कणों के साथ साथ नैनोप्लास्टिक कणों का भी अध्ययन कर रहे हैं। इन कणों की लंबाई एक माइक्रोमीटर से भी कम होती है। नीदरलैंड की Utrecht University के Institute of Risk Assessment Science में टॉक्सिकोलॉजिस्ट “Dick Verthaak” कहते हैं कि – “ पर्यावरण में बड़ी प्लास्टिक की वस्तुएं सूक्ष्म और नैनोप्लास्टिक कणों में टूट जाऐंगी, जिससे वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक कणों की संख्या बढ़ने के कारण मानव रक्त में इन कणों की संख्या बढ़ती जाएगी। ” हम इस प्रश्न Are we swallowing plastic! का उत्तर खोज रहे हैं |
लगभग दो दशक पहले समुद्री जीवविज्ञानियों ने समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक के इकट्ठा होने तथा पारिस्थितिकी तंत्र और जीवों पर इसके प्रभाव का इस शोध — Ocean’s plastics offer a floating fortress to a mess of microbes में अध्ययन किया। वर्तमान समय में वैज्ञानिक, लोगों के खाने पीने की वस्तुओं और घर के अंदर की हवा में माइक्रोप्लास्टिक के कणों का अध्ययन कर रहे हैं। अनेक कॉस्मेटिक प्रोडक्टस जैसे लिपस्टिक, लिप ग्लॉस और आँखों के मेकअप में उनकी अच्छी फिनिशिंग के लिए प्लास्टिक के कण मिलाए जाते हैं। इसके अलावा अन्य पदार्थों जैसे फेस-स्क्रब, टूथपेस्ट और शावर जेल में मृत त्वचा को निकालने और अच्छी सफाई हेतु प्लास्टिक के कण मिलाये जाते हैं। जब ये पदार्थ धोए जाते हैं, तो धोने पर ये माइक्रोप्लास्टिक के कण सीवेज में प्रवेश कर जाते हैं। अभी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि ये माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में किस प्रकार का नुकसान पहुंचा सकते हैं? हालांकि वैज्ञानिकों के एक बड़े समूह को लगता है कि सांस के साथ अंदर आने वाले ये कण फेफड़ों में जलन कर सकते हैं तथा इनकी विभिन्न बनावट में पाए जाने वाले रसायन हॉर्मोन्स में समस्या कर सकते हैं।
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माइक्रोप्लास्टिक ( Microplastics) शरीर में कैसे प्रवेश करते हैं?
माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में कई प्रकार से प्रवेश कर सकते हैं। माइक्रोप्लास्टिक कण किसी खाद्य पदार्थ के साथ मुँह के माध्यम से या साँस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं। इटली में सन 2020 में प्रकाशित हुई रिपोर्ट Micro and nano plastic in edible fruit and vegetavegetables में बताया गया कि हमारे भोजन और पानी में माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जाते हैं। शोध में बताया गया है — प्रयोगशाला में गेहूं और सलाद पत्ता में माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए। ये कण पौधों की जड़ों के माध्यम से मिट्टी से अवशोषित हुए। सीवेज कीचड़ में पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स और वॉशिंग मशीन के माध्यम से निकलने वाले सीवेज में माइक्रोप्लास्टिक कण आते हैं। Read more — The cleanest fuel in the world
साउथ वेस्ट इंग्लैंड में स्थित waste water treatment plant में हुए अध्ययन में बताया गया कि — वहाँ उत्पादित सभी उपचारित अपशिष्ट का उपयोग यदि मिट्टी को उर्वरित करने के लिए किया जाता है। तो अपशिष्ट में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक कणों की मात्रा से हर महीने लगभग 20,000 प्लास्टिक क्रेडिट कार्ड बन सकते हैं। हम इस प्रश्न Are we swallowing plastic! का उत्तर खोज रहे हैं । इसके अतिरिक्त उर्वरकों को नियंत्रित रिलीज के लिए प्लास्टिक के साथ लेपित किया जाता है। जब इन उर्वरकों का प्रयोग फसलों के लिए किया जाता है, तो माइक्रोप्लास्टिक के कण पोंधों की जड़ों में अवशोषित हो जाते हैं और खाद्य पदार्थों में सम्मिलित हो जाते हैं।
साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित रिसर्च आर्टिकल—Microplastic in drinking water? Present state of knowledge and open questions. में बताया गया है कि बोतलबंद और नल के पानी दोनों में माइक्रोप्लास्टिक के कण हो सकते हैं। ये कण पानी में सीधे स्रोत से, उपचार के दौरान या वितरण के दौरान प्रवेश करते हैं। तथा बोतलबंद पानी में पैकेजिंग के दौरान प्रवेश करते हैं। वयस्कों को शिशुओं की तुलना में उच्च जोखिम का सामना करना पड़ता है। शोध से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक प्लेसेंटा के माध्यम से भ्रूण में प्रवेश कर सकता है, और बच्चे माँ के दूध के माध्यम से भी इन कणों को निगल सकते हैं। बच्चे प्लास्टिक की दूध की बोतल या अन्य खिलौनों का उपयोग करके भी माइक्रोप्लास्टिक के कण से संपर्क में आ सकता है। माइक्रोप्लास्टिक कण वास्तव में हवा में भी पाए जाते हैं। पेरिस में हुई एक शोध — Microplastic in Indore and outdoor air. के अनुसार वायु के प्रति क्युबिक मीटर में 3 – 15 कण माइक्रोप्लास्टिक के होते हैं। वायु में माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक की सांद्रता स्थान के साथ बदलती रहती हैं। माइक्रोप्लास्टिक के कण कुछ स्थानों जैसे ट्रैफिक लाइट, इंडोर स्पोर्ट्स स्टेडियम, कपड़ा कारखानों आदि में अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक पाए जाते हैं। लेकिन ये अच्छी खबर है कि माइक्रोप्लास्टिक त्वचा में प्रवेश करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। शोधकर्ता लेस्ली के अनुसार – The epidermis holds off quite a lot of stuff from the outside world, including nano particles. Particles can go deep into your skin, but we have not observed them. Passing the barrier unless the skin damage.
यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि इन कणों को मानव शरीर द्वारा कैसे अवशोषित, वितरित, पाचन और उत्सर्जित किया जाता है। और यदि तुरंत उत्सर्जित नहीं किया जाता तो वे कितने समय तक चिपके रह सकते हैं?
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माइक्रोप्लास्टिक के स्वास्थ्य संबंधी खतरें
हालांकि अभी तक शरीर के अंदर प्रवेश करने वाले माइक्रोप्लास्टिक कणों के हानिकारक प्रभावों को मापा नहीं जा सका है। लेकिन हम यदि इन कणों को ऐसे ही ग्रहण करते रहे तो परिणाम बहुत ही हानिकारक होंगे। शोध अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने से जहरीले रसायन रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं, साथ ही इन खतरनाक कणों के सेवन से स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी हो सकते हैं। हमने अभी तक समझा कि प्लास्टिक उत्पादों के उपयोग से जैसे—बोतलें, बैग, कंटेनर तथा प्लास्टिक के मिश्रण से बने कपड़े धोने के साबुन आदि के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक कण वातावरण में फैलते हैं। चुंकि वर्तमान समय में प्लास्टिक का उपयोग बहुतायत मात्रा में हो रहा है, जिससे माइक्रोप्लास्टिक कणों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। जिसके परिणामस्वरूप मानव रक्त प्रवाह में इन कणों की मात्रा बढ़ती जा रही है।
इस लेख में हम ये जानने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या हम प्लास्टिक निगल रहे हैं! Are we swallowing plastic! और काफी हद तक हमने ये समझा की हम माइक्रोप्लास्टिक कणों के रूप में प्लास्टिक को निगल रहे हैं।
The Plastic Health Coalition रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिक समय तक इन माइक्रोप्लास्टिक कणों के संपर्क में रहने से गंभीर स्वास्थ्य खतरे हो सकते हैं। जिसमें हार्मोन्स में व्यवधान तथा हमारे अंगों और प्रतिरक्षा प्रणाली में गंभीर खतरे शामिल हैं।
नेशनल जियोग्राफिक सहित कई अन्य स्रोतों ने बताया है कि दुनिया भर में उत्पादित और विश्व के सभी जगह बेचे जाने वाले कई प्लास्टिक उत्पादों को जहरीले रसायनों से बनाया जाता है। जो एक बार मानव और पशुओं के शरीर में पहुंचने के बाद उनके स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया में बटेर के चूजों पर एक प्रयोग किया गया। इस प्रयोग में इन चूजों को विषाक्त पदार्थों की छोटी खुराक खिलाई गई और इनका लगातार निरीक्षण किया गया। प्रयोग में ये पाया गया कि इन चूजों को विकास और परिपक्वता में देरी का सामना करना पड़ा। प्रयोग के ये निष्कर्ष मनुष्यों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक पर सूक्ष्म जीवों द्वारा उपनिवेशीकरण किया जाता है। जैसे– Vibriocholera- मनुष्यों में हैजा रोग के लिए उत्तरदायी होता है। इसका प्रमाण उत्तरी सागर से लिए गए माइक्रोप्लास्टिक के नमूनों में मिला है। इसका यह आशय है कि माइक्रोप्लास्टिक भी बीमारी फैलाने में योगदान देता है। Read more — मीट्रिक प्रणाली का विस्तार
नीदरलैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ गोरोनिजन के इम्यूनोलॉजिस्ट बाईब्रो मेलगर्ट ने मानव फेफड़ों के समान विकसित मानव ऊतक पर नायलॉन माइक्रोफाइवर के प्रभावों का अध्ययन किया। उन्होंने अपने प्रयोग में पता किया कि नायलॉन माइक्रोफाइबर के संपर्क में आने से इन ऊतकों में बनने वाले वायुमार्गों की संख्या और आकार दोनों में क्रमशः 67% और 50% की कमी आयी। मेलगर्ट ने बताया कि इसका कारण स्वयं माइक्रोफाइबर नहीं था। अपितु उनसे निकलने वाले रसायन थे। अतः माइक्रोप्लास्टिक को वायु प्रदूषण का एक रूप माना जा सकता है। मेलगर्ट ने बताया कि हम जानते हैं कि वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों में तनाव उत्पन्न करता है और शायद माइक्रोप्लास्टिक के लिए भी ऐसा ही होगा ।
शोधार्थी Nienke Vrisekoop, “मानव प्रतिरक्षा प्रणाली, माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करती है।” विषय पर अध्ययन कर रहीं हैं। उनके अप्रकाशित प्रयोगों से पता चलता है कि प्रतिरक्षा कोशिकाएं, माइक्रोप्लास्टिक कणों को तब तक नहीं पहचानती जब तक उनमें रक्तप्रोटीन, वायरस, बैक्टीरिया या अन्य दूषित पदार्थ संलग्न न हों। लेकिन ये संभावना है कि इस तरह के पदार्थ पर्यावरण में और शरीर के अंदर माइक्रोप्लास्टिक कणों से जुड़ेंगे। यदि माइक्रोप्लास्टिक कण साफ नहीं है तब प्रतिरक्षा कोशिकाएं इन कणों के प्रति प्रतिक्रिया करती हैं और तेजी से नष्ट होती है तथा अधिक प्रतिरक्षा कोशिकाएं इस प्रक्रिया में संलग्न होती है और नष्ट होती रहती है, जिससे फेफड़ों या जठरांत्र संबंधी मार्ग की सूजन संबंधी बीमारियां बढ़ सकती हैं।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में हमने ये जानने का प्रयास किया कि क्या हम प्लास्टिक निगल रहे हैं? Are we swallowing plastic! वास्तव में ये माइक्रोप्लास्टिक कण हमारे लिए बहुत ही हानिकारक है। माइक्रोप्लास्टिक से होने वाले खतरे को कम करने के लिए सबसे अच्छा तरीका ये है कि हम जो खरीदते हैं तथा उपयोग करते हैं उसके बारे में जागरूक रहें। हम सिंगल उपयोग प्लास्टिक जैसे स्ट्रॅा, थैली, पानी की बोतल आदि के उपयोग के स्थान पर कपड़े के बैग, धातु की स्ट्रॅा जैसे पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। हमें प्राकृतिक रेशों से बने कपड़े पहनने चाहिए तथा प्लास्टिक से बने फर्नीचर के बजाय लकड़ी या धातु से बने फर्नीचर उपयोग में लाना चाहिए। अनेक सौंदर्य प्रसाधन पदार्थों जैसे- लिपस्टिक, लिप ग्लॉस, आईलाइनर, फेशियल, स्क्रब आदि में माइक्रोप्लास्टिक के कण होते हैं जो सीधे मुँह के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं तथा धोने पर यह कण सीवेज में मिल जाते हैं जो खेतों में पहुँचकर खाद्य पदार्थों में सम्मिलित हो जाते हैं। अतः हमें इन पदार्थों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए तथा इसके स्थान पर ईकोफ्रेंडली पदार्थों को उपयोग में लाना चाहिए। Read more — आध्यात्मिक कैसे बनें
आज के दौर में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का प्रसार बहुत ही चिंता का विषय है। जितना संभव हो सके इस प्रदूषण के खतरे को कम करने में हमें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। हम जागरूक रहकर व ऐसे प्रदूषण को फैलाने वाले पदार्थों का बहिष्कार करके तथा इकोफ्रेंडली पदार्थों का उपयोग करके इस समस्या का काफी हद तक समाधान कर सकते हैं।
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