सनातन धर्म के रक्षक आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji का जन्म इसी कलयुग में हुआ था । ये अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे। आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी को भगवान शिव शंकर का अंशावतार माना जाता है। इन्होंने भारत के चारों कोनों पर चार मठों की स्थापना की। श्री आदि शंकराचार्य जी ने भारत वर्ष में विभिन्न पाखंडी , शास्त्रों को न मानने वाले, तर्क- वितर्क करने वाले तथा अधर्मी लोगों को शास्त्रार्थ में हरा कर उन्हें सनातन धर्म में लाने का कार्य किया। आइये महान आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji के बारे में जानने का प्रयास करते हैं –
आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji का जन्म व मृत्यु
आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji के जन्म के संबंध में कई विचारधारा प्रस्तुत हैं कुछ लोगों के अनुसार इनका जन्म ईसा से पूर्व छठी शताब्दी से लेकर नवम शताब्दी के मध्य के किसी समय में हुआ था, और कुछ लोग इनका जन्म ईसा से लगभग 400 वर्ष पूर्व का मानते हैं । वही बहुत से संप्रदाय आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मानते हैं। इनका जन्म दक्षिण भारत में केरल प्रदेश में पूर्ण नदी के किनारे बसे कालिंदी नामक गांव में हुआ था। आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी का जन्म नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री शिवगुरु था वे बहुत ही विद्वान और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे, इनकी माता का नाम श्रीसुभद्रा देवी था, कहीं कहीं पर इनकी माता का नाम विशिष्ठा भी मिलता है। बहुत ही वृद्ध हो जाने पर भी इनके माता-पिता के कोई संतान नहीं थी। उनके माता-पिता भगवान श्री शिव शंकर के अनन्य भक्त थे। श्री शिव गुरु और श्री सुभद्रा जी ने भगवान शंकर की बहुत ही कठिन तपस्या की, उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और उन दोनों को एक सर्वगुण संपन्न पुत्र उत्पन्न होने का वरदान दिया।Join my Whatsapp Channel भगवान शंकर की कृपा से दोनों दंपत्ति को एक सर्वप्गुण संपन्न पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। दोनों ने पुत्र का नाम शंकर रखा । यही शंकर भगवान शिवशंकर के अंशावतार आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji कहलाए। सन 820 ई० में 32 वर्ष की अल्प आयु में ही आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji समाधिस्थ हो गए। Are we swallowing plastic! — क्या हम प्लास्टिक निगल रहे हैं!
आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji की बाल्यावस्था
बालक शंकर जन्म से ही बहुत ही प्रतिभाशाली थे , इनको देखकर उनके माता-पिता को यह एहसास होता था कि ये कोई महानविभूति होती हैं। 1 वर्ष की अवस्था में ही बालक शंकराचार्य जी ने अपनी मातृभाषा में अपने मन के भावों को प्रकट करना और स्पष्ट रूप से बताना शुरू कर दिया था। इनकी माता इन्हें पुराण, उपनिषदों की कथा सुनाती थीं। बालक शंकराचार्य जी ने इन कथाओं को सुनकर कंठस्थ कर लिया। आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे इन्होंने 7 वर्ष की आयु में ही वेद, वेदांत, पुराणों, उपनिषदों आदि का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। तब इनके मन में संन्यास लेने का विचार आया। लेकिन बालक शंकराचार्य अपनी माता के बहुत भक्त थे अपनी माता की आज्ञा के विरुद्ध उन्होंने संन्यास लेने का विचार कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया। एक दिन बालक शंकर अपनी माता के साथ नदी पर स्नान करने गए वहां पर स्नान करते समय बालक शंकर के पैर को एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। तभी माता बहुत विलाप करने लगी तब बालक शंकर ने कहा – “ यदि यह मगरमच्छ मेरा पर छोड़ देगा तो मुझे संन्यास पर जाने की आज्ञा दोगी “ तब मां ने हां बोला तभी मगरमच्छ ने शंकर का पैर छोड़ दिया। माता से आज्ञा लेकर, मात्र 8 वर्ष की आयु में बालक शंकराचार्य जी सन्यास ग्रहण करके अपने घर से चले गए। क्या लाइट भी प्रदूषण फैलाती है? – Does light also spread pollution?
बालक शंकर से आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji
सन्यास ग्रहण करके बालक शंकर नर्मदा नदी के तट पर आ गए और स्वामी गोविन्द भगवत्पाद आचार्य जी के शिष्य बन गए। स्वामी जी ने इनका नाम भगवत्पूज्यपादाचार्य रखा। किशोरावस्था मे भटकाव और निराकरण- kishoraavastha me bhatakaav aur niraakaran अपने गुरु के सानिध्य में इन्होंने योग साधना प्रारंभ की और कम समय में ही एक सिद्ध योगी महात्मा बन गए। अपने गुरु की आज्ञा से यह काशी चले गए और वहां जाकर यह वेद वेदांगों का भाष्य लिखने लगे । काशी पहुंचने पर उनकी ख्याति बहुत बढ़ गई तथा अनेक लोग उनके शिष्य बनने लगे। उनके सर्वप्रथम शिष्य का नाम सनन्दन था। काशी में शंकराचार्य जी नें अपने शिक्षक को पढ़ाने के साथ-साथ अनेक ग्रंथ भी लिखे। कहते हैं कि भगवान शिव ने स्वयं इन्हें चांडाल के रूप में दर्शन दिए थे। और भगवान शिव ने इन्हें ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखने तथा धर्म का प्रचार करने का आदेश दिया। काशी में निवास के दौरान एक बार जब वह काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके लौट रहे थे तभी एक वयोवृद्ध ब्राह्मण के रूप में भगवान वेदव्यास आए और उनसे ब्रह्मसूत्र के एक सूत्र पर विचार विमर्श किया लेकिन यह शास्त्रार्थ 8 दिनों तक चलता रहा तब शंकराचार्य जी ने अपनी ज्ञान दृष्टि से देखा तो पाया कि ब्राह्मण के रूप में स्वयं भगवान विष्णु भगवान के अवतार भगवान वेदव्यास हैं। शंकराचार्य जी ने काशी, प्रयाग , कुरुक्षेत्र, बदरिकाश्रम आदि विभिन्न स्थानों की भ्रमण किया प्तथा बहुत से ग्रन्थों की रचना की । प्रयागराज में जाकर उनकी मुलाकात कुमारिल भट्ट से हुई और उनकी सलाह से माहिष्मती में जाकर मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ किया। उन्होंने मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में हरा दिया। मंडन मिश्र की पत्नी भारती मिश्र ने शंकराचार्य जी से शास्त्रार्थ करने का आग्रह किया, तब शंकराचार्य जी ने भारती मिश्र के साथ शास्त्रार्थ किया। काफी दिनों तक शास्त्रार्थ चला और अंत में भारती मिश्र ने शंकराचार्य जी से काम शास्त्र से सम्बन्धित कुछ प्रश्न किये। आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji ने भारती से इन प्रश्नों के उत्तर के लिए छः माह का समय मांगा। इसके पश्चात श्री शंकराचार्य जी ने मृत राजा अमरुक के शरीर में प्रवेश करके श्रृंगार रस का अध्ययन किया। फिर भारती मिश्र से शास्त्रार्थ कर इन प्रश्नों के उत्तर दिए और शास्त्रार्थ मे भारती मिश्र को हराया। इससे आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji की प्रतिष्ठा चारौं ओर फैल गई।
मठों की स्थापना
शंकराचार्य जी ने पूरे भारत में भ्रमण किया। पूरे भारतवर्ष में यात्रा के दौरान इन्होंने बहुत से लोगों को कुमार्ग से हटकर सन्मार्ग पर लगाया। उन्होंने अनेक मन्दिरों की स्थापना करवाई और पूरे भारतवर्ष में सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया। शंकराचार्य जी ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की । आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji ने अपने सबसे योग्य शिष्यों को इन मठों में मठाधीश बनाया । इन मठों में यह परंपरा आज भी विद्यमान है। शंकराचार्य जी ने पूर्व में उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में श्री गोवर्धन मठ, दक्षिण में केरल के रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ, पश्चिम में द्वारकापुरी में शारदा मठ, उत्तर में उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ (बद्रिकाश्रम) की स्थापना की। इन मठों के मठाधीशों को आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी – Adi Guru Sri Shankaracharya Ji के नाम पर आज भी शंकराचार्य कहा जाता है।
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