Aadhyaatmik kaise bane — आध्यात्मिक कैसे बनें

हमारे जीवन में अध्यात्म एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आध्यात्मिकता हमें विपरीत परिस्थितियों में मानसिक तनाव को संभालने की शक्ति प्रदान करती है। मनुष्य में जब आध्यात्मिकता का प्रकटीकरण होता है, तो उसके जीवन में एक नवीन ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा से उसके दृष्टिकोण में सकारात्मकता आती है और नकारात्मकता धीरे धीरे जाती रहती है। अब ये प्रश्न उठता है कि हम आध्यात्मिक कैसे बनें – Aadhyaatmik kaise bane ? या हमारे जीवन में अध्यात्म का प्रकटीकरण किस प्रकार हो? अतः हम इस लेख में उन विधियों व मार्गों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे, जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता का प्रकटीकरण करने का प्रयास कर सकते हैं।

Aadhyaatmik kaise bane

आध्यात्मिक कैसे बनें – Aadhyaatmik kaise bane

आध्यात्मिकता एक व्यक्तिगत अनुभव है, और प्रत्येक व्यक्ति का आध्यात्मिक मार्ग अद्वितीय होता है। अर्थात अलग अलग मनुष्यों के मन में अध्यात्म का उदय भिन्न भिन्न अनुभूति के द्वारा होता है। रिसर्च बताते हैं कि अध्यात्म को अपनाने से मानसिक तनाव को दूर करने में सहायता मिलती है। बहुत से लोगों के मन में ये प्रश्न उठता है की आध्यात्मिक कैसे बनें – Aadhyaatmik kaise bane  ? तो इस लेख में मैं कुछ विधियाँ बताने का प्रयास करूँगा जिनको अपनाकर आध्यात्मिक बना जा सकता है।

अध्यात्म को प्राप्त करने की विधियाँ

भिन्न भिन्न परम्पराओं में विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक साधना का वर्णन किया गया है। इन साधनाओं को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है।
1 ) व्यक्तिगत साधना (Personal Cultivation), उच्च बनाने की क्रिया (Sublimation), और अन्वेषण (exploration) के अभ्यास

2 ) सीखने (learning), समझने (understanding) , और अवशोषित (absorbing) करने का अभ्यास।

3 ) बाहरी क्रिया (External Action) के अभ्यास

(1) व्यक्तिगत साधना (Personal Cultivation), उच्च बनाने की क्रिया (Sublimation), और अन्वेषण (exploration) के अभ्यास

इसके अंतर्गत निम्न क्रियाएंं आती है। ———–

(a) ध्यान -( Meditation )

ध्यान अध्यात्म को प्राप्त करने की प्राचीन विधि है । ये हमारे ध्यान को नियंत्रित करने का एक अभ्यास है। मेडिटेशन के तीन मुख्य प्रकार है।

  1. ध्यान केन्द्रित करना अर्थात अपने दिमाग को एक बिंदु पर केन्द्रित करना।
  2. ओपन मॉनीटरिंग ( खुली निगरानी ) अर्थात वर्तमान क्षण में आपके अनुभव में जो कुछ भी है, उससे अवगत होना।
  3. शुद्ध जागरूकता अर्थात चेतना पर ध्यान देना।

भारत में उत्पन्न विभिन्न धर्मों जैसे हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, वेदांत यू तथा तंत्र में ध्यान। को विशिष्ट स्थान दिया गया है।

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(b) प्रार्थना ( Prayer )

प्रार्थना हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। जब हमारे सामने कोई दुख, विपत्ति और संकट आता है तो हमारे मन में प्रार्थना का ध्यान आता है सभी आस्तिक मार्गों में मौजूद प्रार्थना, भक्ति और समर्पण के साथ हमारे मन को ईश्वर की ओर निर्देशित करने का एक अभ्यास है। प्रार्थना करने की कई तरीके हैं, जैसे प्रार्थना स्क्रिप्टेड रूप से लिखी हुई या केवल सहज भाव से हो सकती है। प्रार्थना ज़ोर से, चुपचाप मन में या बिना शब्दों के बोले भी हो सकती है। प्रार्थना के द्वारा व्यक्ति अपने भागों को ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत करता है। अतः प्रार्थना तो हृदय की पुकार है जो ईश्वर तक अवश्य पहुंचती है।

(c) प्राणायाम (Breath and energy work) :

योग में प्राणायाम का बहुत महत्त्व बताया गया है। प्राणायाम ध्यान एकाग्रचित करने का साधन है| ये हमारी सांस अर्थात प्राणवायु व ऊर्जा में संतुलन बनाए रखता है। प्राणायाम सांस लेने और शरीर के माध्यम से हमारे ध्यान को स्थानांतरित करने के विशिष्ट तरीके हैं। ये अक्सर मंत्रों की पवित्र ध्वनियों की कल्पना या पुनरावृत्ति के साथ होते हैं। ये चिकित्सा, स्फूर्तिदायक, शुद्धिकरण, मंच शांत करने तथा चिंतन करने आदि के उद्देश्य से किया जा सकता है। जिस तरह योग में प्राणायाम है उसी तरह दाओबाद में चिगोंग इसका उदाहरण है। प्राणायाम की प्रक्रिया सूक्ष्म और आंतरिक है तथा यह ध्यान लगाने का अभ्यास है।

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(d) दैहिक तकनीक ( Somatic Techniques )

अध्यात्म की प्राप्ति के लिए दैहिक तकनीकें भी महत्वपूर्ण है। श्वास प्रवाह के कार्यों जैसे प्राणायाम के साथ साथ कुछ परंपराएं स्वास्थ्य के विकास परंपराएं , ऊर्जा प्रवाह को मुक्त करने और अन्य उद्देश्यों के लिए शरीर की मुद्राएं और मूवमेंट का उपयोग करती हैं। दैहिक तकनीकों में योग के आसन, बौद्ध मुद्राएं तथा दाओवादी परंपरा व तांत्रिक विद्यालयों के कई अभ्यास है।

(e) मस्तिष्क और हृदय के गुण ( Qualities of Mind/Heart )

सभी संस्कृतियां और परंपराएं मनुष्य में आध्यात्मिकता हेतु मस्तिष्क और हृदय के कुछ निश्चित गुणों के विकास के लिए बल देती है। ये गुण हैं — शांति, समानता, विनम्रता, बैराग्य, प्रेम, दया, करुणा, विश्वास, भक्ति, अनुशासन, साहस, ध्यान, एकाग्रता सच्चाई, नैतिकता, विवेक और ऊर्जा। इन गुणों को प्रतिबिंबन, अध्ययन, विशिष्ट ध्यान और श्वांस तकनीकों के माध्यम से विकसित किया जा सकता है तथा इन गुणों को अपने मन और हृदय में धारण करने के लिए अपनी दैनिक जिंदगी में अपने व्यवहार के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है।

(f) जप (Chanting)

भारतीय परम्पराओं में जप का विशेष महत्त्व रहा है। अनादि काल से ऋषि मुनि अध्यात्म को प्राप्त करने के लिए जप का आश्रय लेते रहे हैं, जप का उपयोग कई परंपराओं में प्रार्थना, अध्ययन और ध्यान की तैयारी में मन को केंद्रित करने के साधन के रूप में किया जाता है। भक्ति मार्गों में इसका उपयोग समर्पण और भक्ति की भावनाओं को विकसित करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य मार्गों में मंत्रों व ग्रंथों को कंठस्थ करने व चिंतन मनन करने मैं जप का प्रयोग किया जाता है।

(g) वैराग्य (Asceticism)

सांसारिक सुखों व मोहमाया से बैराग्य व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग की ओर ले जाता है। इसमें उपवास, गहन एकांतवास, मौनव्रत, संयम और ध्यान का लंबा समय शामिल है। यह एक माइंड डिटॉक्स या आध्यात्मिक सफाई की तरह है, और यही नकारात्मक भावनाओं को समाप्त करने और अभ्यास में तेजी से आगे बढ़ने का एक शानदार तरीका है। ये इच्छाशक्ति, आत्म नियंत्रण और शांति तथा संतोष की भावना विकसित करता है। जब मन में बैराग्य की भावना का प्रकटीकरण होता है तो मन में किसी और इच्छा का कोई स्थान नहीं रह जाता। योग में इसे ही तप कहते हैं।

(2) सीखने (learning), समझने (understanding) , और अवशोषित (absorbing) करने का अभ्यास।

इन अभ्यासों में निम्न प्रक्रियाएं शामिल होती है।–

(a) अध्ययन और चिंतन – ( Study and Contemplation )

किसी भी विषय को समझने के लिए अध्ययन और चिंतन अति आवश्यक है। अध्यात्म को समझने के लिए साहित्य को पढ़ना, ऋषि मुनियों की वाणी को सुनना तथा चिंतन करना जरूरी है। किसी परंपरा के आध्यात्मिक ग्रन्थों को सुनना और पढ़ना तथा उन शिक्षाओं के अर्थ और निहितार्थ के बारे में गहराई से सोचना आध्यात्मिकता की ओर पहला कदम है। अध्ययन का उद्देश्य समझ अंतर्दृष्टि और ज्ञान प्राप्त करना है। जब हम किसी विषय पर चिंतन करते हैं तो हम ये सोचते है की ये शिक्षाएं मेरे जीवन पर कैसे लागू होती है? इन शिक्षाओं का मेरे लिए क्या अर्थ है और इन्हें जानने के बाद दुनिया को देखने और समझने का मेरा तरीका कैसे बदल जाएगा?

(b) समुदाय और शिक्षक संबंध – ( Community and Teacher Relationship )

शिक्षक के साथ संबंध और अभ्यासकर्ताओं के समुदाय में समय बिताना, न केवल परंपरा को सीखने का एक मूल्यवान तरीका है, अपितु उसके सार को आत्मसात करना भी है। एक समुदाय हमें बहुत से कार्य में सहायता प्रदान करता है, जैसे रास्ते में आने वाली कठिनाइयों पर काबू पाने में सहायता, प्रेरणा, अभ्यास के बेहतर पहलुओं पर अंतर्दृष्टि, उत्तर देना और समान विचारधारा वाले लोग जिनके साथ संबंध बनाना है। कुछ संस्कृतियों में ग्रंथों व पुस्तकों को गौण महत्त्व का माना जाता है, जबकि गुरु के साथ एक व्यक्तिगत संबंध को शिष्य के विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। इनमें से कुछ सत्संग में समय व्यतीत करने पर ज़ोर देते हैं। तथा कुछ परंपराएं गुरु शिष्य के बीच दिल से दिल संचरण पर बल देते हैं, जो दीक्षा के माध्यम से होता है।

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(c) आस्था – ( Belief )

कुछ आध्यात्मिक परंपराओं में बुनियादी सिद्धांतों पर विश्वास करना अध्यात्म के अभ्यास का प्रवेश द्वार है। अन्य मार्गों जैसे बौद्ध धर्म और योग स्वभाव से ही अनुभवात्मक हैं और इनमें बहुत कम या बिल्कुल भी विश्वास की आवश्यकता नहीं होती। जो भी हो ये स्वाभाविक है, की जैसे जैसे मनुष्य किसी मार्ग को गहराई से समझना शुरू करते हैं और वास्तविक प्रगति का अनुभव करते हैं। तो मनुष्य इन शिक्षाओं के पीछे छिपे ज्ञान में अधिक विश्वास करते हैं। यहाँ तक की उन्हें भी जिन्हें आप अभी तक नहीं पहचानते।

(3) बाहरी क्रिया (External Action) के अभ्यास

(a) नीतिशास्त्र – ( Ethics )

सिद्धांतों के एक समूह या व्यवहार के विशिष्ट नियमों का पालन करना अध्यात्म के अभ्यास के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म में पांच मूल उपदेश है। (1)- नुकसान न पहुँचाए। (2)- असत्य मत बोलो| (3)- जो नहीं दिया गया है उसे मत लो। (4)- यौन दुर्व्यवहार में शामिल ना हो| (5)- मादक पदार्थों का सेवन न करें। अधिकांश पंरमंपरओ़ं में समान सिद्धांत ही होते हैं। ये सतह पर जो दिखाई देते हैं उससे कहीं अधिक जटिल और गहरे हैं और वे इसलिए अस्तित्व में है ताकि शरीर, वाणी और मन में हमारे कार्य उस सत्य का समर्थन और प्रतिबिंबित करें जिसकी हम तलाश कर रहे हैं।

(2) धार्मिक संस्कार – ( Ritual )

कुछ परंपराएं अधिक धार्मिक संस्कार वाली है, लेकिन मूल रूप से सभी परम्पराओं में किसी न किसी प्रकार के धार्मिक संस्कार या अनुष्ठान शामिल होते हैं। एक धार्मिक संस्कार कई क्रियाओं का समूह होता है, जो एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता है। आमतौर पर उनके साथ श्रद्धा, गंभीरता या तीव्रता की भावना जुड़ी होती है। इन धार्मिक अनुष्ठानों का अंतिम उद्देश्य कुछ भावनाओं या मन की आवस्थाओं को विकसित कर रहा है,न कि दिखावा करना| इन धार्मिक अनुष्ठानों को करने से मन में आध्यात्मिकता का प्रादुर्भाव होता है।

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(3) सेवा करना – ( Service )

समुदाय की सेवा करना चाहें वह आध्यात्मिक उपासक हो या बड़े स्तर पर समाज हो, हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है| जैसे गरीबों को खाना खिलाना, सामाजिक सुधार, शास्त्रों का अनुवाद, ऑनलाइन समुदायों का समर्थन आदि। इनके लिए हम जो काम करते हैं उसके पीछे का हमारा रवैया, भावनाएँ और इरादा ही हमें आध्यात्मिक बनाता है। आपको ये सभी कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। इनमें से किसी भी एक मार्ग का अनुसरण करना ही पर्याप्त है।

निष्कर्ष – ( Conclusion )

वैसे तो अध्यात्मिकता व्यक्ति के मन में स्वयं प्रकाशित होती है। फिर भी कुछ लोगों के मन में ये प्रश्न होता है कि आध्यात्मिक कैसे बनें -Aadhyaatmik kaise bane ? प्रस्तुत लेख में मैंने अध्यात्म को पाने के लिए कई विधियों का वर्णन किया है। ये विधियाँ ऋषि मुनियों के द्वारा बताई गई तथा अपनाई गई हैं । इन पर चलकर कोई भी मनुष्य अपने जीवन में अध्यात्म का प्रकटीकरण कर सकता है। अनेक विधियाँ होने के कारण मन में यह दुविधा होती है कि कौन सी विधि का अनुसरण किया जाए या कौन सी विधि अधिक लाभकारी है। और यदि आप ये भी नहीं जानते कि कहाँ से शुरू करें । तो मेरा अपना मानना है कि एक मुख्य साधना मार्ग का अनुसरण करें तथा साथ में तीन मुख्य आधार ‘ नैतिकता’, ‘अध्ययन’ और ‘गुणों का विकास’ आवश्यक है।

 

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