आज के समय में मानवीय स्वास्थ्य में गिरावट की मुख्य वजह आजकल का खानपान है। ना चाहते हुए भी हम हमारे शरीर के लिए हानिकारक रसायनों को भोजन के रूप में लेते आ रहे हैं। यह हानिकारक रसायन अदृश्य रूप से हमारे खान-पान में ही छुपे हुए हैं । क्योंकि अनाजों, फलों, सब्जियों को उगाने के लिए फसलों में अंधाधुंध हानिकारक रसायनों का प्रयोग हो रहा है, इससे मिट्टी की उर्वरता तो कम हो ही रही है तथा पर्यावरण में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। इसीलिए भारत में जैविक खेती Organic farming in India की आवश्यकता महसूस हो रही है। आज हम अपने लेख में भारत में जैविक खेती organic farming in India के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश करेंगे-
भारत में जैविक खेती ( पूरी जानकारी) Organic Farming In India
वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रोग की चपेट में है इसका कारण काफी हद तक गलत खानपान है आज हम जो खाद्यान्न भोजन के लिए उपयोग में लाते हैं वह रसायनों से दूषित है। भोजन में प्रयोग किए जाने वाले अन्न जैसे गेहूं, चावल, दाल तथा शाक सब्जी और फलों को उगाने में प्रचुर मात्रा में रसायनों का प्रयोग किया जाता है। लगभग 40 – 50 साल पहले तक भारत में देसी पद्धति से कृषि की जाती थी जिसमें देसी खाद का प्रयोग होता था। खरपतवार को निराई गुड़ाई करके नष्ट किया जाता था। लेकिन फसलों की पैदावार बहुत कम थी। भारत में जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई तो उसकी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति में कमी आने लगी। इसी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु रासायनिक खेती प्रारंभ हुई और कृषि उपज बढ़ाने हेतु रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों व रासायनिक खरपतवार नाशकों का बड़े पैमाने पर प्रयोग होने लगा। आज विश्व भर में खतरनाक उर्वरकों , जहरीले कीटनाशकों व खरपतवार नाशकों का खेती में अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है, जिसके फलस्वरूप मानवीय स्वास्थ्य बहुत प्रभावित हो रहा है। रासायनिक खेती के हानिकारक परिणामों से मानवीय स्वास्थ्य, मिट्टी की उर्वरता तथा पर्यावरण की स्थिति बहुत खराब हुई है। इन समस्याओं से बचने के लिए हमें खेती की एक नई पद्धति की आवश्यकता है जो बढ़ती जनसंख्या की खाद्य जरूरतों की पूर्ति करने के साथ-साथ मानवीय स्वास्थ्य और पर्यावरण मिट्टी की गुणवत्ता बरकरार रखने में सहायक हो। इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जैविक ( jaivik kheti ) खेती बहुत ही सहायक है। आजकल भारत में जैविक खेती – organic farming in India कृषि की एक नई पद्धति उभर कर आई है, जो काफी हद तक इन समस्याओं से निपटने में सहायता करेगी।
जैविक खेती ( Organic Farming )
जैविक खेती ( jaivik kheti ) का उद्गम स्थल भारत ही है। भारत में जैविक खेती organic farming in India प्राचीन काल से होती आ रही है। भारत के लोग हजारों वर्षों से देसी विधियों से खेती करते आ रहे हैं, इसी का विकसित रूप जैविक खेती है। जैविक खेती ( organic farming ) एक ऐसी विधि है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, हानिकारक खरपतवार नाशकों व कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि इनके स्थान पर जैव अवशिष्टों, जैविक खाद व जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में प्रकृति से समन्वय स्थापित करके फसलों का उत्पादन किया जाता है। जैविक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता नष्ट नहीं होती तथा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र पर विषैला प्रभाव नहीं पड़ता। चूंकि जैविक रूप से फसल उत्पादन में रसायनों का प्रयोग नहीं होता इसलिए मानवीय स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है। जैविक खेती ( organic farming ) में जैविक खाद जैसे गोबर की कंपोस्ट, हरी खाद, फसल अवशिष्ट, जीवाणु की खाद, वर्मी कंपोस्ट व कल्चर का प्रयोग किया जाता है। जिससे भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है तथा उत्पादित फसलों की गुणवत्ता बढ़ने से किसानों को अधिक लाभ होता है। जैविक खेती एक तरह से प्राकृतिक संसाधनों के आपसी सामंजस्य पर आधारित है। मुख्य रुप से जैविक खेती ( organic farming ) में ना तो मिट्टी की उर्वरता और ना ही पोषक तत्वों का विनाश होता है जिसके परिणाम स्वरूप हमारा पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता ।
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जैविक खेती की आवश्यकता ( Need of organic farming )
आज हर जगह जैविक खेती ( jaivik kheti ) के बारे में चर्चा हो रही है। लेकिन जैविक खेती की आवश्यकता ही क्यों पड़ी इसके अनेक कारण हैं। वर्तमान कृषि की पद्धति से मानवीय स्वास्थ्य और पर्यावरण पर होने वाले हानिकारक प्रभाव हमें जैविक खेती की ओर ले जाते हैं। वर्तमान में कृषि की रासायनिक पद्धति प्रचलित है इसमें फसलों के उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर रसायनों, रासायनिक उर्वरक, रासायनिक कीटनाशक व खरपतवारनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है। यह हानिकारक केमिकल जल में मिलकर फसलों की जड़ों से अवशोषित होकर फल, सब्जियों, अनाजों व दालों में पहुंचकर उन्हें दूषित कर देते हैं। जब हम इन खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं तो यह हानिकारक रसायन हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और स्वास्थ्य में क्षति पहुंचाते हैं । इसके साथ ही साथ यह हानिकारक रसायन मिट्टी में मिलते हैं और मिट्टी की उर्वरता नष्ट करते हैं। पानी से यह जलाशयों में पहुंचते हैं, इससे बनवन्य जीव जंतुओं को बहुत हानि पहुंचती है। शाक सब्जियों में रसायनों का प्रयोग बहुत ही खतरनाक है अतः इन सभी हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए हमें बिना रसायनों वाली जैविक खेती ( jaivik kheti ) की आवश्यकता है।
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जैविक खेती करने का तरीका ( Method of organic farming )
खेती से पहले की तैयारी ( pre-plant preparation )
जैविक खेती करने से पहले कुछ बातें ध्यान में रखना आवश्यक होता है। इन बातों को ध्यान में रखकर हम जैविक खेती करने हेतु अच्छी तैयारी कर सकते हैं –
- किसी भी खेत में जैविक व रासायनिक खेती एक साथ नहीं कर सकते, आपको पूरे खेत में ही जैविक खेती करनी होगी।
- खेती करने से पहले खेत की गहरी जुताई करें जिससे खरपतवार निकल जाए।
- जैविक खेती के लिए खेत पर ही जैविक खाद बनाने के लिए उपाय कर लिए जाएं क्योंकि बाजार से लाई गई जैविक खाद अशुद्ध होगी वह बहुत महंगी पड़ेगी।
- जैविक खाद नाडेप, कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट के लिए गोबर की आवश्यकता होती है अतः पशुपालन अति आवश्यक है।
- जैविक कीटनाशकों व खरपतवारनाशकों को खेती से 1 महीने पहले ही बना लें।
- जैविक खेती के लिए हरी खाद बहुत ही महत्वपूर्ण हैं अतः फसल कटाई के उपरांत ही हरी खाद जैसे ढेंचा, मूंग, उड़द आदि की बुवाई कर दें ।
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बीजों को तैयार करना ( seed preparation )
जैविक खेती के लिए पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता है। किसी भी रासायनिक विधि से उपचारित या संकर बीजों का प्रयोग नहीं किया जाता है। जैविक खेती के लिए रोग रहित तथा प्रतिरोधी प्रजाति वाले बीजों का प्रयोग करना उत्तम होता है। अभी तक जैविक खेती के लिए विशेष उपचारित बीजों की कोई व्यवस्था नहीं है, फिर भी किसान भाई घर पर ही कुछ देसी विधियों से बीजों का उपचार कर सकते हैं–
- गर्म पानी से उपचार।
- गोमूत्र से उपचार।
- प्रति 10 किलोग्राम बीज के लिए 250 ग्राम हींग से उपचार।
- गोमूत्र में उचित मात्रा में हल्दी मिलाकर उससे बीजों का उपचार करना चाहिए।
- जैव उर्वरकों- राइजोवियम, एजोटोबेक्टर, बीजामृत, ट्राइकोडरमा आदि से बीजों का उपचार।
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मिट्टी को उर्वरित करना ( fertilize soil )
जैविक खेती करने के लिए मिट्टी को उर्वरित करना व उसकी उर्वरता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। मिट्टी को जीवंत बनाना बहुत आवश्यक है। मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए उचित फसल चक्र परिवर्तन, फसल अवशेषों का प्रयोग तथा प्रभावी फसलों का चयन करना चाहिए। जैविक फसल सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक फसल के बाद जैव अवशेषों को मिट्टी में मिलाना बहुत आवश्यक है। ऐसा माना जाता है कि वर्ष भर में हम जितना खाद्यान्न उत्पादित करते हैं उतना जैवांश मिट्टी में मिलाना उचित होता है। पशुओं के गोबर व गोमूत्र से बनी कंपोस्ट का प्रयोग अति उत्तम है। जिस मिट्टी में फास्फोरस की कमी हो या मिट्टी अम्लीय हो तो कंपोस्ट बनाते समय उसमें फास्फोरस डालना चाहिए। कंपोस्ट में जैव उर्वरकों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा पंचगव्य , दशगव्य व वायोसोल जैसे उन्नत जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए। खेत की मिट्टी जब एक बार अच्छे से उर्वरित हो जाती है तो वह तीन-चार वर्षों तक उन्नत फसल उत्पादित करती रहती है।
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फसल को पोषण देना ( crop nutrition )
जैविक खेती ( organic farming ) में रासायनिक खाद का प्रयोग पूरी तरह वर्जित है। परंतु जैविक खादों के संयोजन का प्रयोग करना उचित है। फसलों के पोषक तत्व बरकरार रखने के लिए फसल चक्र में परिवर्तन अत्यावश्यक है। विपरीत गुणों वाली फसलों को उगाना चाहिए तथा वर्ष में एक बार दलहनी फसलों को जरूर उगाना चाहिए क्योंकि उससे मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ता है। प्रत्येक फसल के उपरांत हरी खाद उगाना व फसल अवशिष्ट के प्रयोग से मिट्टी में जैविक कार्बन स्तर व नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है। जैविक खादों जैसे केंचुए से प्राप्त वर्मी कंपोस्ट, पशुओं के मल मूत्र से बनी नाडेप खाद, जीवांश से बनी जैविक खाद तथा फास्फोरस संवर्धित जैविक खाद का प्रयोग फसल बुवाई से पहले करने में अच्छा रहता होता है। जैविक उर्वरकों का प्रयोग प्रत्येक प्रकार की फसल के लिए अलग-अलग होता है जैसे धान में एजोस्पाईरिलम, दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर, गन्ने में एसिटोबेक्टर तथा अन्य फसलों में एजोटोबेक्टर कल्चर का प्रयोग होता है। पोटाश, फास्फोरस व जिंक की आपूर्ति के लिए के० एम० बी०, पी० एस० बी०, जेड० एस० बी० का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पंचगव्य, जीवामृत तथा अमृतपानी, नील हरित शैवाल, एजोला माइक्रोफास तथा बैग कवक का प्रयोग भी करना फसल को पोषण देने के लिए किया जाता है।
फसल की सुरक्षा ( crop protection )
जैविक खेती में कीटों, रोगों व खरपतवारों से फसलों की सुरक्षा करना बहुत महत्वपूर्ण है| इसके लिए हम रसायनों का प्रयोग नहीं कर सकते। खरपतवार न हो इसके लिए बुवाई से पूर्व गहरी जुताई करने चाहिए। रोगों, कीटों व खरपतवार से बचने के लिए फसलों का चक्रीकरण बहुत जरूरी है। जैविक रूप से बनाए गए व्याधि नाशकों जैसे गोमूत्र, नीम की पत्ती, निवोली व खली से बनाए गए कीट व्याधि नाशक, ट्राइकोडरमा, वीजामृत, आईपोमिया की पत्ती का अर्क, मट्ठा, मिर्च लहसुन से बने द्रव्य आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा फसल को कीट पतंगों से बचाने के लिए प्रकाश जाल (Light trap), यौन आकर्षण जाल (फएरओमओन), चिपकने वाले जाल तथा कीटभक्षी चिड़ियों का प्रयोग करना चाहिए।
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जैविक खेती के लाभ ( advantages of organic farming )
जैविक खेती ( jaivik kheti ) किसानों, मिट्टी, पर्यावरण व आम जनमानस सभी के लिए बहुत ही उपयोगी है –
- जैविक खेती में मिट्टी में हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं होने से मिट्टी दूषित व बिषैली नहीं होती है।
- जैविक खाद, जैविक उर्वरक व जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।
- जैविक खेती से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है जिससे बार-बार सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती।
- जैविक खेती से प्राप्त फसल गुणवत्ता युक्त होने के कारण अधिक मूल्य पर बिकती है जिससे किसानों को लाभ होता है।
- जैविक खेती में रसायनों का प्रयोग नहीं होता जिससे मिट्टी जल व वायु में प्रदूषण नहीं होता परिणामस्वरूप मानव, पर्यावरण व पारितंत्र पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।
- जैविक खेती में रसायनों का प्रयोग नहीं होता जिससे कृषि लागत में कमी आती है।
जैविक खेती के संवर्धन हेतु भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही परियोजनाएं ( Projects being run by the Government of India for the promotion of organic farming )
जैविक खेती के संवर्धन के लिए भारत सरकार, कृषि मंत्रालय व नाबार्ड मिलकर कुछ जैविक परियोजनाएं ( ORGANIC PROJECT ) चला रहे हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं –
परंपरागत कृषि विकास योजना ( PKVY )
भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय पूरे देश में जैविक खेती के प्रोत्साहन के लिए यह योजना चला रहा है। इस योजना में किसानों का समूह बनाकर उनको जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तथा उनके उत्पादों को प्रमाणीकरण ,प्रसंस्करण तथा मंडी तक पहुंचाने में सहायता प्रदान की जाती है। जैविक खेती हेतु आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है।
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति ( BPKP )
नीति आयोग की पहल पर भारत सरकार व कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए यह योजना प्रारंभ की। इस योजना में किसानों को गौ पालन तथा अपने खेतों पर ही जैविक खाद व उर्वरक बनाने हेतु अनुदान दिया जाता है।
मॉडल क्लस्टर योजना / कृषक उत्पादक समूह ( FPO )
नाबार्ड, भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से इस योजना का कार्य किया जा रहा है।
पूर्वोत्तर राज्यों के लिए मिशन ऑर्गेनिक मूल्य संवर्धन श्रंखला योजना
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती के प्रोत्साहन हेतु यह कार्यन्वित की जा रही है।
इन योजनाओं के बारे में अधिक जानने के लिए निम्न पोर्टल पर संपर्क किया जा सकता है—
(1) . कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ( Department of agriculture and farmers welfare )
(2) . राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेत केंद्र ( National centre for organic and natural farming )
(3) . HELPDESK ~ 033 2340 0020/21/22